Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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ओसवाल जाति की ऐतिहासिकता ]
[ वि० पू० ४०० वर्ष
क्या श्रोसवाल जाति में शूद्र भी शामिल हैं ?
कई इतिहास एवं श्रोसवाल जाति की उत्पत्ति से अनभिज्ञ लोग यह भी कह उठते हैं कि ओसवाल जाति में भंगी ढेड़ादि शूद्र जातियां भी शामिल हैं और वे अपनी बात की पुष्टि के लिये दो दलीलें पेश करते हैं।
१-आचार्य रत्नप्रभसूरि ने उपकेशपुर में आकर जब ओसवाल बनाये थे उसमें राजा प्रजा सब नगर के लोग शामिल थे। अतः यह स्वयं प्रमाणित हो जाता है कि जब सब नागरिक ही जैन बन गये तो उसमें शुद्र भी आ गये, अतः ओसवालों में शूद्र वर्ण भी शामिल है।
२-ओसवालों में ढेढ़िया बलाई चंडालिया श्रादि जातिये आज भी विद्यमान हैं, वे स्वयं शूद्रत्व की सबूती दे रही हैं । जो पूर्व अवस्था में ढेढ़ बलाई चंडाल थे ओसवाल बनने के पश्चात् भी उनके वे ही नाम ज्यों के त्यों रह गये, इससे भी पाया जाता है कि ओसवालों में शूद्र वर्ण भी शामिल है।
___उ०-जमाना बहुत सभ्यता का होने पर भी हमारे भारतीय सुपुतो (1) के अज्ञान के पर्दे अभी सर्वथा दूर नहीं हुये जिसका यह एक ज्वलंत उदाहरण है। सब से पहिले तो यह देखना है कि किसी पट्टावलियों अथवा वंशावलियादि ग्रन्थों में यह लिखा है कि उपकेशपुर नगर के निवासी सब के सब लोग जैन हो गये थे ? परन्तु पट्टावलियां वगैरह में ऐसे उल्लेख मिलते हैं कि उस समय उपकेशपुर में करीब ५००००० मनुष्यों की संख्या थी जिस में सवालक्ष क्षत्रियों ने ही जैनधर्म स्वीकार किया था, इतना ही क्यों पर वाममार्गियों का शूद्र लोगों को अपने पक्षकार बना कर राज-सभा में सूरिजी के साथ शास्त्रार्थ करने का भी उल्लेख मिलता है । इससे भी यही सिद्ध होता है कि जिस समय आचार्य रत्नप्रभसूरि ने उपकेशपुर में जैन बनाये उसमें एक भी शूद्र नहीं था तथा सब नगर ही जैन बन गया होता तो जन-संख्या लिखने का क्या कारण था ? यही लिख देते कि नगर निवासी सब के सब जैनी बन गये थे।
दूसरे उस समय की परिस्थिति को देखा जाय तो उस समय शुद्रों के लिये किस प्रकार का परहेज रक्खा जाता था कि उन बिचारों को राजपूतों के शामिल मिलाना तो क्या पर यदि कोई ब्राह्मण अपने धर्मशास्त्र को पढ़ता वहां शूद्र की छाया भी पड़ जाय या दृष्टिपात हो जाय तो वह शूद्र बड़ा भारी अपराधी समझा जाता था। अत: इस हालत में क्षत्री एवं ब्राह्मण उन शूद्रों के साथ भोजन कर लें या बेटी का लेनदेन कर लें यह सर्वथा असंभव है ।
यदि ओसवाल जाति के अन्दर शूद्र लोग शामिल होते तो जैन धर्म के कट्टर विरोधी न जाने श्रोसवालों के लिये कौन सी सृष्टि की रचना कर डालते । राजा वेन, नौनंद एवं चंद्रगुप्त उच्च कुलीन क्षत्रिय होने पर भी जैनधर्म स्वीकार कर लेने के कारण उनको हलकी जाति के पतित करार दे दिया था तो ओसवालों के लिये वह कब चुप रहने वाले थे, पर उन्होंने ऐसा एक भी शब्द उच्चारण नहीं किया कि ओसवालों में शूद्र जाति शामिल है और न पिछले लोगों ने अपने पुराणादि प्रन्थों में एक अक्षर भी इस विषय का लिखा है। अत: ओसवाल जाति पवित्र क्षत्रियवर्णं से बनी है । इस जाति के जन्म-दिन से आज तक कोई भी शूद्र इसमें शामिल नहीं है।
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