Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य यक्षदेवरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् २१८
विद्वानों की शोध खोज और कलिंग का इतिहास-आज विज्ञानिक युग एवं शोध खोज का जमाना है ! जिस शोध खोज ने कमाल कर दिया है, सोये हुए भारतीयों को जगा दिया है। जिन बातों को हम स्वप्न में भी नहीं जानते थे इतना ही क्यों पर हम हमारे पूर्वजों का उज्जवल गौरव को भी भूल बैठे थे । उनका नाम निशान तक भी हमारे लक्ष में नहीं थे; पर संशोधकों के पूर्ण परिश्रम से आज अनेक प्राचीन शिलालेख ताम्रपत्र दानपत्र सिक्के वगैरह उपलब्ध हुए हैं कि जिन्हों के आधार पर आज हम प्राचीन इतिहास की भींत ज्यों त्यों खड़ी कर सकते हैं। यों तो भारत के कई विभागों के इतिहास की सामग्री मिली हैं परन्तु उसमें से यहां पर मैं कलिंग देश के विषय ही कुछ लिखने का प्रयत्न करूंगा।
कलिंग--जिसको आज उड़ीसा कहते हैं प्राचीन समय में इसका बहुत विस्तार था। यह देश बड़ा ही सम्पत्तिशाली था, इस देशवासियों की वीरता जगत्प्रसिद्ध थी। साधारणतया यह तीन विभागों में विभक्त था जैसे दक्षिणकलिंग, मध्यकलिंग और उत्तरकलिंग। उत्तर कलिंग को उत्कल भी कहते थे, इसका उड़ीसा नाम तो केवल उड़ जाति के नाम पर ही हुआ है।
पुराणों में--भी इस देश का उल्लेख मिलता है कि राजा सुद्योमन के तीन पुत्र थे-गया, उत्कल और विनिताश्व । इनके अधिकारकी भूमि क्रमशः बिहार, उत्कल और पश्चिमाचल थी तथा ये तीनों देश कलिंग के शामिल ही समझे जाते थे। यही कारण है कि कलिंग के राजाओं को विकलिंगाधिपति को उपाधि थी।
रामायण से--पता चलता है कि कलिंग की भूमि भगवान् रामचन्द्रजी के चरण कमलों से भी पवित्र हो चुकी थी। जिस समय भगवान् रामचन्द्र ने वन-प्रस्थान किया था उस समय वे उत्कल, गोदावरी होते हुए पंचवटी पधारे थे।
महाभारत--से भी पाया जाता है कि कलिंग की कुशल सैन्य युद्ध में बड़ी बीरता रखती थी । जब कौरव और पांडवों के आपस में युद्ध हुआ था तब कलिंग की सेना कौरवों की मदद पर थी और उसने बड़ी वीरता से युद्ध किया था।
कलिंग का व्यापार--व्यापार व्यवसाय में भी कलिंग सर्वोपरि था। उस समय भारत का व्यापार केवल आज के जैसा कमीशनी व्यापार नहीं था पर व्यापार में हिम्मत, दूरदर्शिता, बुद्धि आदि जो गुण चाहिये वे कलिंगवासियों में विद्यमान थे । कलिंगवासियों का व्यापार केवल भारत में ही नहीं परन्तु अन्य देशवासियों के साथ भी कलिंग के व्यापार का विस्तार था । वे बंगाल समुद्र अरबसागर और हिंदमहासागर को पार कर जहाजों द्वारा जावा, बालिद्वीप, चीन, जापान, लंका, सुमात्रा, सिंगापुर, मारीशत और ब्रह्मद्वीप आदि पाश्चात्य व पौरवात्य देशों में भी आते जाते थे और बढ़िया बढ़िया वस्त्र एवं जवाहिरात का व्यापार किया करते थे। इसी कारण कलिंग उस समय बड़ा ही समृद्धिशाली और सभ्यता का आदर्श कहलाता था ।
कलिंग के राजा--कलिंग देश पर यों तो समय समय अनेक राजाओं ने राज किया है पर इतिहास की कसौटी पर विशेष महत्वशाली राजा खारबेल का नाम अधिक प्रसिद्ध है। जिसका एक विस्तृत शिलालेख अभी थोड़ा अर्सा पूर्व मिला है वह शिलालेख क्या है एक खारबोल के जीवन का पूरा इतिहास है उस शिलालेख से उस समय की राजनीतिदशा, सामाजिकव्यवस्था और धार्मिक प्रवृतियों का सहज ही में पता मिल जाता है प्रस्तुत शिलालेख किस कठिनाइयों के साथ मिला और उसके भाव को किस प्रकार
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