Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
View full book text
________________
आचार्य यक्षदेवसरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् २१८
उसने मगध देश के राजा पुष्पमित्र को २ धार पराजित करके अपनी आज्ञा मनवाई । पहले नंदराजा ऋषभदेव की जिस प्रतिमा को उठा ले गया था उसे वह पाटलिपुत्र नगर से वापिस अपनी राजधानी में लेगया और कुमारगिरि तीर्थ में श्रेणिक के बनवाये हुए जिनमंदिर का पुनरुद्धार कराके आर्य सुहस्ती के शिष्य सुस्थी-सुप्रति बुद्ध नाम के स्थविरों के हाथों से उसे फिर प्रतिष्ठित कराकर उसमें स्थापित किया।
पहले जो बारहवर्ष तक दुष्काल पड़ा था उसमें आर्यमहागिरि और आर्यसुहस्तीजी के अनेक शिष्य शुद्ध आहार न मिलने के कारण कुमारगिरि नामक तीर्थ में अनशन करके शरीर छोड़ चुके थे। उसी दुष्काल के प्रभाव से तीर्थकरों के गणधरों द्वारा प्ररूपित बहुतेरे सिद्धान्त भी नष्ट प्राय हो गये थे। यह जानकर भिक्खुराय ने जैन सिद्धान्तों का संग्रह और जैनधर्म का विस्तार करने के लिये संप्रतिराजा की नाई श्रमण निग्रंथ तथा निर्गथियों की एक सभा वहाँ कुमारी पर्वत नामक तीर्थ पर इकट्ठी की, जिसमें आर्य महागिरिजी की परंपरा के बलिस्सह, बोधिलिंग, देवाचार्य, धर्मसेनाचार्य, नक्षत्राचार्य, आदिक दो सौ जिनकल्प की तुलना करने वाले जिनकल्पी साधु, तथा आर्यसुस्थित, आर्यसुप्रतिबुद्ध, उमास्वाति, श्यामानार्य प्रभृति तीन सौ स्थविरकल्पी निग्रंथ आये । आर्या पोइणी श्रादि तीन सौ निम्रन्थी साध्वियों भी वहाँ इकट्ठी हुई थीं । भिक्खुराय, सीवंद, चूर्णक, सेलक श्रादि सातसौ श्रमणोपासक और भिक्खुराय की स्त्री पूर्णमित्रा श्रादि सात सौ श्राविकाए भी उस सभा में उपस्थिति थीं।
पुत्र, पौत्र और रानियों के परिवार से सुशोभित भिक्खुराय ने सब निग्रंथों और निप्रैथियों को नमस्कार करके कहा-'हे महानुभावो ! अब आप बर्धमान तीर्थकर प्ररूपित जैनधर्म की उन्नति और विस्तार करने के लिये सर्वशक्ति से उद्यमवंत हो जायँ ।' भिक्खुराय के उपर्युक्त प्रस्ताव पर सर्व निर्मथ और निथियों ने अपनी सम्मति प्रकट भी और भिखुराय से पूजित सत्कृत और सम्मानित निर्मथ और निमंथियाँ मगध, मथुरा, वंग आदि देशों में तीर्थकर प्रणीत धर्म की उन्नति के लिये निकल पड़े।
___ उसके बाद भिक्खुराय ने कुमारगिरि और कुमारीगिरि नामक पर्वतों पर जिन प्रतिमाओं से शोभित अनेक गुफाएँ खुदवाई, वहाँ जिनकल्प की तुलना करने वाले निग्रंथ वर्षा काल में कुमारीपर्वत की गुफाओं में रहते और जो स्थविरकल्पी निर्पथ होते वे कुमारपर्वत की गुफाओं में वर्षा काल में रहते । इस प्रकार भिक्खुराय ने निग्रन्थों के लिये विभिन्न व्यवस्था कर दी थी।
उपर्युक्त सर्व व्यवस्था से कृतार्थ हुए भिक्खुराय ने बलिस्सह, उमास्वाति, श्यामाचार्यादिक स्थविरों को नमस्कार करके जिनागमों में मुकुट तुल्य दृष्टिवाद अंग का संग्रह करने की प्रार्थना की। __भिक्खुराय की प्रेरणा से पूर्वोक्त स्थविर आचार्यों ने अवशिष्ट दृष्टिवाद को श्रमण समुदाय से थोड़ा
( हाथी गुफा के शिलालेख में भी मिथुराजा, महामेघवाहन, और स्वारघेलसिरि इन तीनों नामों का प्रयोग खारवेल के लिए हुआ है।
(२) खारवेल के शिलालेख में भी मगध के राजा हस्पितमित्र (पुष्पमित्र का पर्याप)को मोतने का सरलेख है (३) नंदराज द्वारा लेजाई गई जिन मूर्ति को कलिंग में वापिस ले जाने का हाथीगुंफा में इस प्रकार स्पष्ट उल्लेख है:"नंदराजनीतं च कालिगं जिनं सनिवेस' गृहरतनान पडिहारे हि भंग मागध-वसुंध नेयाति [1]?
( हाथी गुंफा लेख पंक्ति १२, बिहार ओरिसा जर्नल, वॉल्युम ४ भाग ४ )
३६१ www.dinelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only