Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य यक्षदेव सूरि का जोवन ]
[ओसवाल संवत् ५१५-५५७
पुस्तक में इन ८४ जाति के नाम छन्दवद्ध कविता में दिया है कविता में छन्द भंग हैं पर मैं यहाँ ज्यों का त्यों दे देता हूँ
"चोधरी फीरोड़िया भंशाली बनमाली बंबा जुगराज्य गौतवंशी मोदी अजमेरा है । पाटणिया अनुपड़िया भीमडिया भैसा बडिया राजेंद्रा सरवालिया यूँच ऊकारा है । पिंगुलिया पितलिया भूतलिया अरड़क आवरिया सुरपतिया हरदिया मालसरा है। साखुणिया दादडिया क्षेत्रपाला कोकराज हुकड़िया कुलभाजा पीवा अरु संगारा है ।
शाह पाटशी दोसी सेठी वैद कटारिया वज गंगवाल । भैसा भोरिया मोहनिया मादिया सोनी अरु दाकलीवाल ॥ सांगाणी गोदा लोवडिया दर दोदा अरु फिर कासलीवाल । पाटोदी पहाड़िया विनायकिया लोहडिया टुंगिया चाडवाल ॥ संवका झोजरी पांडिया बेनडिया काला अरु वलाल । चरकियां छावड़ा निगादिया निपोलियारु पापड़ीवाल । करवागर नरपतिया निगद्या नागड़िया रारारु लाटीवाल ।
वरखोदा छाहड़ जलवाना राजहंस लोवटारु भूवाल । मूलसजारु बोहरागोत्र, जाति चौरासी कहाय, श्रावक श्री जिनसेन के किये देश खंडाला जाय ।
उपर दी हुई तालिका और इस कविता के नामों में कई नाम रहो बदल हैं शायद इसका कारण कवित अर्वाचीन होने से कई गौओं की शाखा प्रशाखा के नाम दर्ज कर कवि ने चौरासी नामों की संख्या मिलादी हो।
खंडेलवाल जाति का उत्पति समय कई स्थानों पर विक्रम संवत् एक माघ शुक्ल पंचमि का बतलाया है और साथ में इस जाति के प्रतिबोधक दिगम्बर आचार्य जिनसेन को लिखा है यह विचारणीय है कारण श्वेताम्बर शास्त्रानुसार दिगम्बरमत की उत्पत्ति वि० सं० १३९ में तब दिगम्बर मतानुसार वि० सं० १३६ में बतलाई जाती है अतः विक्रम संवत, एक में दिगम्बरमत का जन्म ही नहीं हुआ था दूसरे दि० आचार्य जिनसेन के समय के लिये हम देखते हैं कि विक्रम संवत् एक में दिगम्बर मत का जन्मही नहीं हुआ था अर्थात् दि० प्राचार्य जिनसेन का समय विक्रमकी नौवों शताब्दी का है यदि खंडेलवाल जाति आचार्य जिनसेन प्रतिबोधित है तो इस जातिका उत्पत्ति समय विक्रमकी नौवीं शताब्दी का मानने में कोई भी आपति नहीं है दूसरा नौवीं शताब्दी पूर्व इस जाति के अस्तित्व का कोई प्रमाण भी नहीं मिलता है इससे भी वही मानना ठीक है कि खंडेलवाल जाति विक्रम के नौवीं शताब्दी में प्रायः राजपूतों से बनी है मूल में यह जाति दिगम्बरमत को मानने वाली थी पर बाद में इस जाति के कुछ लोग श्वेताम्बर साधुओं के उपदे रा से श्वेताम्बर धर्म को मानने लग गये थे-जो मारवाड़ के कई ग्रामों में आज भी विद्यमान हैं।
दिगम्बरमतोपासक जैसे खंडेलवाल जाति हैं वैसे वघेरवाल जाति भी दिगम्बर मतोपासक हैं और इस जाति के प्रतिबोधक भी आचार्य जिनसेन ही बतलाये जाते हैं इस जाति की उत्पत्ति भी यज्ञ की घोर हिंसा से अरूची के कारण ही हुई हैं यद्यपि जैनाचार्य एवं बोधाचार्य के उपदेश से यज्ञ प्रथा बन्द सी हो गई थी पर खंडेलवालों की ८४ जातियें ]
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