Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० १५७-१७४ वर्ष ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
साधन सामग्री विद्यमान थे। जैसा लाला था वैसे ही ललिता थी और त्रिभुवन तो इन दोनों से भी कुछ और भी विशेषता रखता था। कहा भी है कि --'पूर्वकर्मानुसारेण जायते ज्ञन्मिनां हि धीः'
एक समय शाह लाला अर्द्ध निद्रा में क्या देखता है कि आप संग्राम में गये और आपने अपनी वीरता से सोलह सुभटों के सिवाय सब को पराजित कर दिया बाद आप स्वयं यकायक हताश हो भूमि पर गिर पड़े इत्यादि । जब आप जागृत हुये तो आश्चर्य हुआ कि आज मुझे यह क्या स्वप्न आया । यदि कोई इस विषय के ज्ञाता हों तो पूंछ कर निर्णय करू।
भाग्योदय आचार्य यक्षदेवसूरि भू भ्रमण करते हुये कोरंटपुर नगर की ओर पधार रहे थे यह समाचार मिलते ही शाह लालादि श्रीसंघ ने सूरिजी महाराज का सुन्दर सत्कार कर नगर प्रवेश करवाया ! सूरिजी ने भगवान महावीर की यात्रा कर मंगलाचरण के पश्चात् सारगर्भित देशना दी बाद सभा विसर्जन हुई।
मंत्री लाला समय पाकर सूरिजी के पास गया और बन्दन कर अपने स्वप्न के लिये पूछा। इस पर सरिजी ने कहा भक्त अब तेरी उम्र केवल सोलह वर्षों की रही है अतः तुम्हें आत्मकल्याण में लग जाना चाहिये । भक्त लाला ने कहा पूज्यवर ! आत्मकल्याण तो आप जैसे महात्मा ही कर सकते हैं मेरे सिर पर तो अनेक कार्य की जुम्मेवारी है जैसे एक तरफ कुटुम्ब का पालन पोषण दूसरी ओर गजकार्य तीसरे त्रिभुवन अभी बालक है। इसकी शादी भी करनी है । मुझे घंटा भर की भी फुरसत नहीं मिलती है फिर मैं कैसे आत्मकल्याण कर सकू ? हाँ मेरी इच्छा इस ओर सदैव बनी रहती है शासन का कार्य पर मेरी रूची है द्रव्य खर्च करने में मैं आगा पीछा नहीं देखता हूँ पर निर्वृत्ति के लिये मुझे समय नहीं मिलता है इत्यादि । सूरिजी ने कहा लाला ! शासन के हित द्रव्य व्यय करना भविष्य में कल्याणकारी अवश्य है पर यह प्रवृति मार्ग है इसके साथ निर्वृति मार्ग का भी आगधन करना चाहिये । क्योंकि शुभ प्रवृति से शुभ कमों का संचय होता है और उनको भी भोगना पड़ता है तब निवृति से कर्मों की निर्जरा होती है लाला! संसार तो एक प्रकार की मोह जाल है न तो साथ में कुटुम्ब चल सकेगा न राज काज ही चल सकेगा
और न पुत्र ही साथ चलने वाला है । भला सोचिये आज शरीर में व्याधि या मृत्यु आ जाय तो पूर्वोक्त कार्य कौन करेगा ? बस तुम यही समझ लो कि आज में मर गया हूँ फिर तो तुम्हारे पीछे कोई भी काम नहीं रहेगा। सूरिजी का कहना लाला की समझ में आ गया कि बात सच्ची है आज मैं मर जाऊं तो मेरे पीछे काम कौन करेगा ? अतः पीछे काम की फिक्र करना व्यर्थ है । परन्तु मेरा एक पुत्र है इसकी शादी तो अपने हाथ से कर दूं। इस विचार से सूरिजी से अजे की पर इसके लिए सूरिजी क्या कह सकते थे । सूरिजी का फर्ज तो उपदेश देने का था वह दे दिया।
__शाह लाला सकुटुम्ब सूरिजी का हमेशा व्याख्यान सुना करता था । आपका पुत्र त्रिभुवनपाल तो विशेष सूरिजी की सेवा में ही रहता था। एक दिन सूरिजी का व्याख्यान ब्रह्मचर्य के महत्व के विषय में हो रहा था । आपने फरमाया कि सब व्रतों में बह्मचर्या गजा है। इतना ही क्यों पर शरीर में जितने धातु पदार्थ हैं उन में भी वीर्य ही राजा है । जिस जीव ने आजीवन ब्रह्म वय्ये व्रत का अखंड रूप से पालन किया है । उनकी जबान सिद्ध हो जाती है । यंत्र मंत्र रसायन वगैरह ब्रह्मचर्य से ही सिद्ध होता है। हाड में ताकत, हृदय में हिम्मत, मगज में बुद्वि खून का विकाश वीर्य से ही होता है। अतः मनुष्य मात्र का धर्म है कि वे सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।
. [ सूरिजी का लाला को उपदेश--rary.org
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