Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi

View full book text
Previous | Next

Page 854
________________ आचार्य रत्नप्रभसूरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ५९९-६१८ देकर उन पतितोंका उद्धार किया । एक चतुर्मास आपने शिव नगर में किया तब दूसरा मारोट कोट में किया बाद बहाँ से कच्छभूमि की स्पर्शना करते हुए सौराष्ट्र में पधार कर तीर्थाधिराज श्री विमलाचलजी की यात्रा की और कई अस तक सौराष्ट्र एवं लाट प्रदेश में भ्रमण कर आर्बुदाचल की यात्रा कर चन्द्रावती, पद्मावती, शिवपुरी होते हुये कोरंटपुर पधार कर भगवान महावीर की यात्रा की । उस समय कोरंटगच्छ के आचार्य कनकप्रभरि कोरंटपुर में ही विराजते थे। जब रत्नप्रभसूरि का आगमन सुना तो श्रीसंघ के साथ आपने सूरिजी का खूब स्वागत किया। दोनों गच्छों के आचार्य में इतना मेल मिलाप था कि किसी को यह मालूम नहीं होता था कि ये दो गच्छों के भिन्न २ आचार्य हैं । सूरिजी का व्याख्यान हमेशा होता था। कोरंटसंघ और आचार्य कनकप्रभसूरि के आग्रह से आचार्य रत्नप्रभसूरि ने वह चतुर्मास कोरंटपुर में ही करने का निश्चय कर लिया श्रतः जनता में धर्मोत्साह खूब बढ़ गया । केवल एक कोरंटपुर का ही क्यों पर आस पास के ग्रामों के लोगों ने भी अच्छा लाभ उठाया । चन्द्रावती पद्मावती और उपकेशपुर के कई भक्तों ने तो सूरिजी की सेवा एवं देशना श्रवण की गरज से कोरंटपुर में आकर छावनीयें ही डाल दी थीं। पूर्व जमाने में गुरुदेव की सेवा और आगमों के सुनने में विशेष लाभ समझा जाता था । और इस प्रकार लाभ उठाया भी करते थे सूरिजी महाराज का व्याख्यान प्रायः त्याग वैराग्य एवं संसार की असारता पर ही विशेष हुआ करता था कि जिसका जनता पर खूब ही प्रभाव पड़ता था । कई मुमुक्षुओं ने संसार को असार समझ कर सूरिजी के चरण कमलों में दीक्षा लेने की तैयारी कर ली थी। इतना ही क्यों पर चंद्रावती के प्राग्वट वंशीय मन्त्रीकरण को संसार त्याग की भावना हो गई उसने सूरिजी से प्रार्थना की कि प्रभो चतुर्मास के बाद आप चन्द्रावती पधारें तो मेरी इच्छा है कि मैं इस असार संसार का त्याग कर आपके चरण कमलों में भगवती जैन दीक्षा ग्रहण करूँ । सूरिजी ने कहा 'जहा सुखम् ' और जैसी क्षेत्रस्पर्शता ! वस, चतुर्मास समाप्त होते ही कोरंटपुर में बारह भावुकों को दीक्षा देकर सूरिजी चन्द्रावती पधारे। मंत्रीवरण ने सूरिजी के नगर प्रवेश का बड़ा ही शानदार महोत्सव किया और करने लगा दीक्षा की तैयारियें । जिन मन्दिरों में अष्टान्हि का महोत्सव पूजा प्रभावना स्वामि वात्सल्यादि अनेक शुभ कार्य किये। मंत्री करण के पुत्र मंडण ने इस उत्सव में सवा लक्ष द्रव्य व्यय किया । मंत्री करण के साथ कई ९८ नरनारी भी दीक्षा लेने को तैयार होगये । इन सब को शुभ मुहूर्त में सूरिजी ने विधि विधान के साथ दीक्षा दी जिससे जैनधर्म की खूब ही प्रभावना हुई। जब एक बड़ा आदमी धर्म करने में अग्रेश्वरी होता है तो उनके अनुकरण में ओर भी अनेक भावुक अपना कल्याण कर लेते हैं जिसके लिये मंत्रेश्वर का एक ताजा उदाहरण है आचार्य रत्नप्रभसूरि भिन्नमाल, सत्यपुरी, शिवगढ़, श्रीनगर आदि नगरों में विहार करते पाहिकापुरी में पधारे वहाँ के श्रीसंघ ने आपका सुन्दर स्वागत किया कुछ अर्सा स्थिरता कर वहाँ की जनता को धर्मोपदेश दिया । वहाँ से तांबावती, विराट-नगर, मेदनीपुर, पद्मावती, हंसावली होते हुये नागपुर पधारे । वहाँ भी आपने सात महानुभावों को दीक्षा दी। बाद हर्षपुर, संरक्खपुर, माडव्यपुर होते हुये उपकेशपुर पधार रहे थे यह शुभ संवाद सुन उपकेशपुर की जनता में उत्साह का समुद्र ही उमड़ उठा। वहाँ के श्रीसंघ ने सूरिजी का बड़ा ही शानदार नगर प्रवेश महोत्सव किया। सूरिजी ने चतुर्विध श्रीसंघ के साथ भगवान् महा कोरंटपुर में युगल आचार्य ] Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only ५२५ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980