Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० २८२-२९८ वर्ष ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
गुणपाल ने
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१४-मुजपुर के श्रीमालवंशी ___ भगा ने सूरिजी के पास दीक्षा ली १५-चावड़ी के प्राग्यट वंशी पोलाक ने १६-करणावती के प्राग्वट वंशी जाकण ने १७-भद्रावती के मोरक्षगौर गोंदा ने , १८-त्रिपुरा के कनोजिया. जोगड़ ने १९-देवपुर के चिंचटगौ० पाथु ने २०-जानपुर के मल्लगी. २१-रत्नपुर के चरड़गौ० मुकुद २२-बड़गाँव के सुधड़गौर ढढर २३-मिसाला के श्रेष्टिगो० भुकंद २४-दशपुर के बाप्पनागगी. मेहराय ने २५ - उज्जैन के कुलभद्रगौ. रावल ने , २६-रायपुर के प्राग्वट वंशी रामा ने ,
२७-देवलागढ़ के प्राग्वट वंशी भादू ने , इनके अलावा कई स्त्रियों को तथा आपके आज्ञावृति मुनिश्वरों ने भी कई मुमुक्षुओं को दीक्षाये दी थी यही कारण था कि आपका शासन में बहुत सी प्रान्तों में मुनि महाराज बिहार कर जैनधर्म का प्रचार खूब जोरों से कर रहे थे कई मुनि अलोकिक विद्या और लब्धियों को धारण करने वाले भी थे जिससे भी वे अपने कृत कार्य में सफलता हासिल कर शासन की कीमती सेवा बजाई थी :
आचार्य सिद्धसूरीश्वरजी के समय बादी प्रतिवादियों के साथ कई प्रकार के शास्त्रार्थ भी हुए करते थे उनके सामने भी दट कर रहना पड़ता था कई राजा महाराजाओं की सभाओं में आप स्वयं एवं आपके विद्वान् मुनि बादियों के साथ शास्त्रार्थ कर जैन धर्म की विजय बिजयंति चारों ओर फहरादी थी और ज्यों ज्यों वे देश विदेश में घूम धूम कर नये जैन बनाते थे त्यों त्यों उनके श्रात्मकल्याण के लिये अनेक ग्रन्थों का निर्माण और नये नये मन्दिरों की प्रतिष्टाएँ भी करवा देते थे कारण वे भविष्य वेता इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि इस कलिकाल में धर्म के ये दो ही स्थम्भ है । १ आगम-शास्त्र २ मन्दिर ।
प्राचार्य श्री के शासन में मन्दिरों की प्रतिष्टाएं १- स्थानपुर के श्रेष्टिवार्य० कल्हण के बनाये महावीर मन्दिर की प्रतिष्टा २-सोपारपट्टन के क्षत्रीराव: रावण के , " । ३-मदनपुर के करणाट० करण के " , " ४-चंदेरीपुरी के बाप्पनाग बालड़ के , पार्श्वनाथ , ५-दशपुरनगर के आदित्यनाग सालग के , , , ६-उज्जैन नगर के भद्र गौ० वीरदेव के , , "
७--माण्डवगढ़ के सुखा गौ० नारायण के, " " ६९६
[ मरिजी के शासन में मन्दिरों की प्रतिप्रा
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