Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० २८२-२९८ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
शरीर के भस्म लगा कर एक आसन पर बैठ, योगी के बतलाये 'रुढ, मुंड स्वाहा' ३ जप करने लगा। योगी ने कहा कि मैं जाकर शिवजी से प्रार्थना करूंगा कल दोपहर को वापिस आकर ऋद्धि-सिद्ध करवा दूंगा इतना कह कर योगी तो चला गया। दीवान साहब बैठ कर जोर २ से 'रूंढ मुढ स्वाहा' का जाप कर रहे हैं । सूर्योदय हो गया तब भी दीवान साहब अपने घर पर नहीं पहुँचे । राज सभा ने सब जगह तलाश करवाई पर, कहीं पर पता न चला। तब बाजार के लोगों ने योगी की ओर देखा तो मालूम हुआ कि कल वाला योगी युवक था पर यह तो बृद्ध है । ध्यान लगा कर देखा तो सूरत दीवान जैसी पाई गई । यह खबर राजा के पास पहुँची तो राजा ने खुद आकर बाजार में देखा तो दीवान बैठा जोर २ से जप कर रहा है राजा ने कहा दीवानजी आप ठग को पकड़ने गये पर ठग आपको ठग गया है । जाप को छोड़ कर एवं राख को धोकर घर पधारें। दीवान शरम के मारे बोल न सका । पर, मन में समझ गया कि धूर्त-ठग मुझे ठग गया है दीवान शर्मिन्दा हो घर पर गया और सब नगर में हंसी हुई । इस पर राजा ने कहा कि ठग कोई जबर है । अत्र दूसरों से पकड़ा नहीं जायगा । फिर खुद राजा ने राज सभा में खड़ा होकर ठग को पकड़ने का उठाया और रात्रि के समय घोड़े पर सवार हो राजा नगर में पहरा देने को निकल पड़ा। इस बात का पता भी अभयकुमार को मिल गया ।
अभयकुमार सब बातों की निगाह रखता था । कुमार ने धोबी का रूप बना कर रात्रि में तालाब पर कपड़े धोने को गया । एक मिट्टी की हांडी पर सफेदा - कालस लगा कर साथ ले गया । राजा को घोड़े पर सवार हुआ तालाब की ओर आता देख वह मिट्टी का बरतन पानी में तेरा दिया। राजा ने श्राकर धोबी से पूछा कि रे धोबी ! तूने कोई ठग देखा है । धोबी ने कहा महाराज मैं ठग को क्या जानू परन्तु घोड़े की श्रावाज सुन कर एक मनुष्य अभी पानी में पड़ गया देखिये वह तैरता जा रहा है राजा ने सोचा कि ठग यही है और मेरे डर से वह तालाब में चला गया है। बस राजा ने अपनी अच्छी पोशाक एवं घोड़ा धोबी को दे दिया और धोबी के कपड़े पहन तलवार हाथ में लेकर तालाब में उस हांडी की ओर चला गया । ज्यों २ राजा पानी में आगे बढ़ता जाता है त्यों २ पानी के हिलने से मिट्टी का बरतन श्रागे बढ़ता जाता है । राजा गुस्सा में श्राकर कहता है कि अरे ठग तूने जौहरी बाजार लूटा, कोतवाल एवं दीवान को ठगा । पर, अब कहाँ जायगा ? नंगी तलवार से तेरे शिर को उड़ा दूंगा। इधर धोबी राजा की पोशाक पहन घोड़े पर सवार होकर तालाब के दरवाजे पर आकर दरवान को कहा कि अरे लोगो आज मैंने ठग को पकड़ लिया है। अभी वह श्रावेगा और कहेगा कि मैं गजा हूँ परन्तु तुम उसको जाने नहीं देना | दरवाजे वालों ने घोड़ा देख राजा समझ कर उनका कहना स्वीकार कर लिया । घुड़सवार ने माता के पास आकर सब हकीकत कहदी । माता ने कहा बेटा ! तेरा पिता शीतकाल में तकलीफ पाया । कुमर ने कहा कि तकलीफ देखे बिना मालूम कैसे होगा कि एक सेठ की पुत्री को विवाह कर छोड़ आया हूँ । खैर उधर राजा तैरता २ नजदीक पहुंच कर तलवार की झपट मारी तो मिट्टी का बरतन फूट गया : राजा ने सोचा कि अरे वह धोबी नहीं पर वही ठग था। राजा हताश हुआ । तालाब में से बड़ी मुश्किल से निकला । शीत पड़ रहा था। कपड़े पानी में तर हो गये थे । जल्दी २ दरवाजे पर श्राया । मगर दरवानों को तो पहले ही ठग कह गया था। दरवाजे पर राजा को रोक दिया कि तुम ठग हो । राजा ने बहुत कहा पर दरवाजे वालों ने एक भी नहीं सुनी तब क्या करे ? रात्रि तो ज्यों-त्यों बड़ी मुश्किल से
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मन्त्री अभयकुमार और राजा श्रेणिक
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