Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० २८२-२९८ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
३-ॐकारपुर से भूरि गौत्री शाह नारा ने श्री शत्रुजय का संघ निकाला ४-आधाट से अदित्य० शाह जोधा ने ५-मथुरा से श्रेष्टिगौ० शाह श्रादू ने ६-विराट नगर से बाप्पनाग० शाह देदा ने , ७-मेदिनीपुर से भाद्र गौ शाह नागदेव ने ८-- चंदेरी से कन्नोजिया गौ० शाह देवा ने , ९- रामपुरा से बलाह गौ० शाह रावल ने । १०- खटकूप से करणाट गौ० शाह गोपाल ने , ११- उपकेशपुर से प्रेष्ठि गौ० शाह रतना ने , १२-रत्नपुर से सुचंति गौ० शाह हीरा ने १३-क्षत्रीपुरा के ब्राह्मण शिवदास ने १४-ताबावती के चरड गौ कुंभा युद्ध में काम आया उसकी स्त्री सती हुई १५-पाल्हिका के श्रेष्ठिवीर भाणा युद्ध मे. १६-उच्च कोट के मन्त्री राणो युद्ध में १७-शिवगढ़ के श्रेष्ठिनारायण युद्ध में १८ -गोसलपुर के राव रुद्राट ,
१९-डमरेल के श्रेष्टि सांगा ,
आचार्यश्री सिद्धसूरीश्वरजी महाराज महान् प्रतिभाशाली आचार्य हुए हैं आप अपने सोलहा वर्ष के शासन में कई प्रान्तों में विहार कर जनधर्म का प्रचार एवं प्रभावना कर खूब कीमति सेवा की ऐसे महापुरुषों का हम जितना उपकार माने उतना ही थोड़ा है उस विकट अवस्था में जैन धर्म जीवित रह सका यह उन महान् उपकारी पुरुषों के उपकार का ही मधुर फल है यदि ऐले परमोपकारी पुरुषों का एक क्षण भरी भी हम उपकार भूल जावे तो हमारे जैसा कृतघ्नी इस संसार में कौन हो सकेगा ? अतः हमे समय समय उन महान् उपकारी पुरुषों का उपकार को याद करना चाहियेश्रेष्ठिकुल अवतंस पच्चीसवें, सिद्धमूरि गुण भरि थे।
जैनधर्म के आप दिवाकर, शासन के वर धूरि थे ॥ विद्या और सिद्धि ये दोनों, वरदान दिया यशधारी को।
शासन का उद्योत किया गुरु, वन्दन हो उपकारी को ।। ॥ इति श्री भगवान पार्श्वनाथ के २५३ पट्टपर प्राचार्य सिद्धसूरीश्वर महाप्रभाविक प्राचार्य हुये ।।
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६९८
[ सूरिजी के शासन में तीर्थों के संघ
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