Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
View full book text
________________
आचार्य यक्षदेवनार का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ६१८-६३५
१६-रूपनगर के तप्तभट्ट गो० साहरण के बनाये महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई १७-चौरग्राम के आदित्यनाग मलहर के , १८-खीमड़ली प्राम के भाद्र गौ० नारायणके ,, पार्श्वनाथ , , १९---रतपुर के कनोजिया गौ० हरदेव के , , , , २०-चैनपुरा के कुमट गौत्रीय केल्हण के ,, , , २१- वागडीया प्राम के प्राग्वट वंशीय फूवाके, , , २२-स्तदेवपुर के प्राग्वट वंशीय डांवार के , , , २३-चित्रकीट के प्रग्वट वंशीय जिनदास के , सुमतिनाथ , " २४-जाबलीपुर के प्राग्वट वंशीय विंदा के , चन्दाप्रभु , २५-तक्षिला के श्रीमाल वंशीय राजा के ., महावीर , २६-जाकोटनगर के ,, ,, दूधा के , ,
, , २७-उमरोल प्राम के श्रीमाल वंशीय देवा के ,, , , , ,
इनके अलावा कइ घर दगेसर को भी प्रतिष्टाएं करवाई थी आचार्य श्री ने कई विधि विधान एवं तात्विक विषय के ग्रन्थ निर्माण करके भी जैन समाज पर महान उपकार किया है वर्तमान में शायद वे प्रन्थ उपलब्ध न भी हो पर पट्टावलियों में कई प्रन्थों के नाम जरूर मिलते हैसंचेती गोत्र के थे वे भूषण, यक्षदेव वर सरी थे।
ज्ञाननिधि निर्माण ग्रन्थों के, कविता शक्ति पुरी थे ॥ प्रचारक थे जैन धर्म के, अहिंसा के वे स्थापक थे ।
उज्ज्वल यशः अरु गुण जिनके, तीन लोक में व्यापक थे ।। ॥ इति श्री भगवान् पार्श्वनाथ के २२ ३ पट्ट पर आचार्य यक्षदेवसूरि महाप्रभाविक आचार्य हुये ।।
सूरीश्वरजी के हाथों से प्रतिष्ठाएं ]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org