Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० १९९ – २१८ वर्ष ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
कर्त्तव्य ही है कि संघ में उपद्रव होता हो तो हम प्रयत्न करें। आप निशंक रहें हम शीघ्र ही मथुरा पहुँचेंगे। सूरिजी के वचन सुन संघ अश्वरों को संतोष हुआ कि अपना परिश्रम सफल हो गया है । संघनायकों ने सोचा कि जब सूरिजी जल्दी ही पधारने वाले हैं तो अपने भी सूरिजी की सेवा का लाभ क्यों न उठावें । बस, सुबह होते ही सूरिजी ने विहार कर दिया और मथुरा के श्रावक भी सूरिजी के साथ होगये । बिना विलम्ब थोड़ा समय में ही सूरिजी महाराज मथुरा पहुँच गये । संघनायक ने आगे जाकर शुभ समाचार सबको सुना दिये फिर तो था ही क्या सबका उत्साह बढ़ गया । और सूरिजी का बड़ा ही शानदार स्वागत किया । सूरिजी महाराज के पास एक धर्ममूर्ति नाम का बाल शिष्य था वह विद्या मंत्र में बड़ा ही निपुण था । उसने सूरिजी के मंगलाचरण के पश्चात् आम जनता में शास्त्रार्थ के लिये उद्घोषण करदी कि यदि कोई भी व्यक्ति शास्त्रार्थ करना चाहता हो तो धर्मवाद, विद्यावाद, मंत्रवाद जैसा वादी चाहे वैसा ही शास्त्रार्थ करने को हम तैयार हैं। बस सब नगर में जहाँ देखो वहाँ यही चर्चा हो रही थी। जैनों का उत्साह खूब बढ़ गया अतः वे लोग कहने में कब चूकने वाले थे । आओ मैदान में और करो शास्त्रार्थ । रात्रि समय बौद्धाचार्य ने एक शक्ति को सूरिजी के मकान पर भेजी पर सूरिजी के सब साधु ज्ञान ध्यान कर रहे थे शक्ति का कुछ भी जोर नहीं चला पर जब इस बात का पता धर्ममूर्ति को लगा तो उसने अपने विद्याबल से उस शक्ति को ऐसी जकड़कर बांधली कि साथ में बौद्धाचार्य भी बँध गया । बौद्धाचार्य ने बहुत उपाय किया पर न तो श्राप बन्धनमुक्त हो सका और न शक्ति ही वापिस श्रसकी। सुबह भक्त लोग दर्शनार्थ आए तो बुद्धिकीर्ति बन्धा हुआ पाया पूछने पर वह लज्जित हो गया । आखिर उसको सूरिजी महाराज से माँफी माँगनी पड़ी जब जाकर वह बंधन से मुक्त हुआ । शक्ति ने तो यहाँ तक प्रतिज्ञा करली कि अब मैं जैनाचार्य के सामने कभी पेश नहीं आऊँगी । बस, बौद्वाचर्य का घमण्ड गल गया । उसने सोचा कि यहाँ मेरी कुछ भी चलने की नहीं है। अब मेरे लिए यही अच्छा है कि मैं यहाँ से रफूचक्कर बन जाऊँ । बस, वह किसी भक्त से बिना कहे ही पिछली रात्रि में नौ दो ग्यार होगया ।
हुए
जैनधर्म का विजय डंका सर्वत्र बजने लगा । जो लोग बौद्धाचार्य के भौतिक चमत्कारों से विचलित थे वे भी जैनधर्म में स्थिर होगए और कई बौद्धलोगों को भी सूरिजी ने जैनधर्मोपासक बना लिए । सूरिजी महाराज का व्याख्यान हमेशा होता था जिसको श्रवण कर जनता खूब आनन्द लूटरही थी । सूरिजी मथुरा से विहार कर हस्तनापुर, सिंहपुरादि तीर्थों की यात्रा करते हुए कुनाल में पधारे । कुनाल के श्री संघ ने सूरिजी का स्थान स्थान पर स्वागत किया। सूरिजी ने रहाडी, भुगोली, सावत्थी लोहाकोट, सालीपुर, श्रीपुर और तक्षशिला तक विहार कर जनता धर्मोपदेश कर जागृत किया । पञ्जाब में भी आपके बहुत से साधु विहार कर रहे थे। उनके कार्य पर आपने प्रसन्नता प्रगट कर उनका योग्य सत्कार कर उत्साह को बढ़ाया और वह चातुर्मास तक्षशिला नगर में किया जहाँ जैनों की घनी आबादी और करीब ५०० जैन मन्दिर थे । आप श्री के विराजने पर धर्म की अच्छी उन्नति हुई। वहाँ से विहार कर आप श्री ने क्रमशः सिन्ध भूमि को पवित्र बनाया । सिन्ध में भी आपके बहुत से साधु साध्वियाँ विहार करते थे सिन्ध के बडियार, मलकापुर, रेणुकोट, सोलोर, श्रालोर, डबरेल, सिनपुर गगरकोट, नारायणपुर, समसोल, देपालकोट, वीरपुर, फीफाटे, तलपोट कटीपुरा, करणजोश, सीतपुर, सिद्धपुर, थणोद, चण्डोली, चुडी, छीछोली, कोरपुर आदि सर्वत्र विहार कर धर्म की जागृति की कई माँस मदिरा सेवियों को जैन धर्म की शिक्षा दीक्षा
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[ मथुरा में बोधाचार्य का पराजय rary.org.