Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० १५७-१७४ वर्ष ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
१६-चक्रावती के श्रेष्टि गो. , बेरीशाल के , आदीश्वर ,, १७-खोखर के आदित्यनाग , नरशी के , बासपूज्य , , , १८- खीणोदी के बाप्पनाग , खतेणी के , आदीश्वर ,, २९-जीवा प्राम के बाप्पनाग , चापा के , पार्श्वनाथ ,, २०-डाबरेलनगर बलाहा शाह समरा के बनाया पार्श्वनाथ ,, , २१- मथुरा के तप्तभट गौ०, पाशधर के , महावीर , , , २२-भादावर के श्रादित्य , जैतसी के , , , , , २३-परखल के चरड गोत्र ,, पुन्यपाल के , शान्तिनाथ ,, , , २४-सहाना के लुंग गोत्रीय शाह गुणराज के बनाया मुनि सुब्रत मन्दिर की प्र० करवाई २५-संखपुर के श्रेष्टि गोत्र , मुकन के , सुमतिनाथ , , , २६-आघाट के आदित्याग० मंत्री जसवीर के , शान्तिनाथ , " २७-श्रासिका के बलाहा. नाना के
, महावीर " , " २८-विगह के डिडु गौ० रूपा। ३९- उपकेशपुर के कनौजिया गौ० कल्हण के , , , ,
३०-आचार्य कक्कसूरि एक समय कोरंटपुर में विराजते थे वहां का मंत्री नोहड को उपदेश दिया और उसका विचार एक जैनमंदिर बनवाने का हुश्रा परन्तु उस समय वह सत्युपुरी ( साचौर ) के मंत्री पद पर था उसकी इच्छा हुई कि वहां कोरंटपुर में तो बहुत मंदिर हैं यदि सत्यपुरी में मन्दिर बनाया जाय तो अधिक लाभ का कारण होगा आचार्य श्री से अर्ज की कि मेरा विचार है कि मैं सत्यपुरी में चरम तीर्थ र शासनाधीश भगवान महावीर का मंदिर बनाऊ ? सूरिजी ने कहा, बहुत अच्छी बात है जहां अावश्यकता हो वहां मंदिर बनाने में विशेष लाभ है। मंत्रीश्वर ने सत्यपुरी में आलीशान मंदिर बनवा कर भगवान महावीर की मूर्ति की अञ्चनसिलाका एवं प्रतिष्ठा आचार्य कक्कसूरि के कर कमलों से बड़े ही उत्साह से करवाई । कई कई पट्टावलियों में प्रतिष्ठाकार आचार्य का नाम जज्जगसूरि लिखा मिलता है पर यह नाम कर सूरि का ही अपर नाम और यह कक्कसूरि कोरंटगच्छ के आचार्य थे मंत्री नाहड़ जाति का श्रीमाल
और कोरंटगच्छोपासक श्रावक था । इस मंदिर का उल्लेख जगचिन्तामणि के चैत्यवन्दन में भी आता है "जयउ वीर साचउरीमण्डणं"
३१-- पट्टावली में कथा एक लिखी है कि उपकेशपुर में अदित्यनाग गौत्रीय सोभा नाम का श्रेष्टि रहता था उसकी माता को स्वप्न आया कि अब तेरा आयुष्य एक मास का है अतः तू श्री शत्रुजय तीर्थ की यात्रा कर तेरा शरीर वहां तीर्थ पर छूटेगा इत्यादि । माता सुबह अपना पुत्र सोमा को सब हाल कहा सोमा ने कहा माता स्वप्न तो जंजाल है और कई प्रकार से स्वप्न आया करता है पर माता ने कहा कि नहीं बेटा मैं तो शत्रुनय जाऊंगी और इस शरीर को वहीं पर छोडूगी माता का आग्रह देख सोमा ने कहा यदि आपको शत्रुजय ही जाना है तो कुछ रोज ठहर जाओ मैं शत्रुजय का संघ निकालूगा अतः आप शत्रु जय की यात्रा संघ के साथ करना पर माता तो जानती थी कि मेरा आयुः एक मास का ही है फिर कब संघ निकले और कब मैं शत्रुजय जाऊ अतः बेटा से कहा कि मेरा जन्म सुधारना चाहता है तो मुझे ५७२
[ मंत्री नाहड़ के मन्दिर की प्रतिष्ठा
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