Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य देवगुप्तमरि का जीवन]
[ओसवाल संवत् ५७४-५७७
११-ईस्वी सन् २०० पूर्व सेई. स. २०० तक मिश्र निवासी लाल जाति के तथा भीतर पैथन और टगौर से बंगाल की खाड़ी तक व्यापार के लिये आते थे। ___इनके अलावा भी इतिहास में ऐसे अनेक प्रमाण मिलते हैं जिससे कहा जा सकता है कि भारत व्यापार की जन्म भूमि हैं अन्य देशों ने व्यापारिक शिक्षा भारत से ही पाई है। पश्चात्य लोग भारत के माल को बड़ी रूची से खरीदते और काम में लेते थे वे भारतीय जहाजों की हमेशा प्रतिक्षा किया करते थे
अब थोड़े भारतीय उन प्रदेशों का नामोल्लेख कर दिये जाते है कि जहाँ बड़े बड़े प्रमाण में माल तैयार होता था और वे व्यापार के लिये केन्द्र कहलाते थे । पाश्चात्य लोग वहाँ से माल ले जाते थे।
१-भरोंचनगर पुगणे जमाने से ही व्यापार का केन्द्र रहा है। कोसंवी नगरी का धवल श्रेष्टि पांचसौ जहाजें लेकर भरोंचनगर में आया था अपना माल बेचकर वहां से अन्य माल खरीद कर जहाजें भरकर पश्चात्य देश में ले गया था।
२-शौर्यपुर नगर में सोनारूपापारा की छापका व कपड़ा पर जरी बुटें आदि का कम थोकबन्ध होता था जहाजें बनाने के बड़े २ कारखाने थे जिसमें ५०० से १००० टन वजन वाले जहाज तैयार होते थे।
३-रांदेर-यह पहले बड़ा नगर था यहाँ पुष्कल व्यापार होता था । ४-वल्लभी नगरी-यह भी पुरांणा जमाने से व्यापार का मथक था। ५- अंकलेश्वर-यहाँ कागज बहुत प्रमाण में बनते थे और भारत के अलावा विदेश में भी जाते थे।
६- महाराष्ट्रय प्रान्त के केवला जिला भी एक व्यापार का केन्द्र था विदेशी लोग वहाँ आया जाया करते थे और जथ्था बन्ध माल खरीद कर अपने देशों में ले जाया करते थे ।
७ - सोपार पहन-यहभी एक व्यापार की मंडीथी समुद्र मार्ग से व्यापारी लोग आया जाया करते थे। ८-- स्तम्भनपुर-यह भी व्यापार का मुख्य स्थान था ।
९-उपकेशपुर यहाँ के बड़े-बड़े व्यापारी जल और थल के रास्ते से जथ्था बन्ध व्यापार विदेशों में किया करते थे कई कई लोगों ने तो विदेश में अपनी कोठियें भी स्थापित कर दी थी इसी प्रकार नागपुर मेदनीपुर माडव्यपुर सत्यपुर मुग्धपुर और भीन्नमालादि नगरों के व्यापारियों का व्यापार विदेश के साथ था।
१०-कलिंग के व्यापारी बहुत प्रसिद्ध है कि वे थोकबन्द मान विदेशों में भेजते थे सम्राट् खारवेल के जीवन से पता मिलता है कि एक समय महाराज खारबेल घुड़सवार होकर जंगल में गया था वहाँ आपको कई कलिंग के व्यापारी मिले पर वे थे दुःखी और अपनी दुःख की बात राजा खरबेल को निवेदन की थी कि विदेशी लोग कर के लिए हम लोगों को हेरान करते हैं इसको सुनकर कलिंगपति ने सैना तैयार कर विदेशियों पर धावा बोल दिया आखिर उन्हों को पराजयकर भारतीय व्यापारियों के लिये सदैव के लिये आराम कर दिया । इस प्रकार बंगाल के व्यापारियों का भी विदेश में व्यापार था
११-ढाका बंगाल का कपड़ा मुलक मशहूर था।
और भी भारत की कोई भी प्रान्त ऐसी नहीं थी कि जहाँ थोक बन्द माल तैयार नहीं होता था अर्थात् भारत बड़ा ही उद्योगी देश था हर प्रकार का माल यहाँ तैयार होता था और व्यापार के लिये वे देश विदेश में जाते आते थे । यही कारण था कि भारत एक समृद्धशाली धनकुवेर देश था। हम देखते हैं कि जैन धन कुवेरों ने एक एक धर्म कार्यों में करोड़ों रुपये बात की बात में खर्च कर डालते थे इसका कारण वे विदेशियों के साथ व्यापार सम्बन्ध ]
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