Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० १५७-१७४ वर्ष]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
विनती की और सूरिजी ने लाभालाभ का कारण जान कर श्रीसंघ की विनती को स्वीकार कर लिया । बस फिर तो था ही क्या, आज शिवनगर के संघ में हर्ष का पार नहीं था।
सूरि जी के विरामने से वे वल शिवनगर की जनता में ही नहीं पर सिन्ध प्रान्त में धर्म का प्रभाव इतना फैला गया कि लोग श्रात्मकल्याण की भावना से एवं सूरिजी की सेवा तथा व्याख्यान सुनने की गरज से बहुत प्राम नगरों के लोग तो वहाँ आ आकर अपनी छावनीये तक भी डाल दी अहा-हा उस जमाना में जनता की भावना आत्मकल्याण की ओर कहाँ तक बढ़ी हुई थी वे लोग संसार में रहते हुए भी किस प्रकार अपना कल्याण करना चाहिते थे सिन्ध प्रदेश में मुख्यतया उपकेशगन्छाचार्यों का ही प्रभुत्व था जिसमें यक्षदेव सूरि का नाम तो और भी मशहूर था कारण इस प्रान्त में सब से पहला यक्षदेवसूरि ने ही धर्म की नीव डाली थी खैर सूरीश्वरजी के चतुर्मास विराजने से धर्म का बहुत लाभ हुआ। कई ४८ नरनारी दीक्षा लेने को तैयार हो गये । एक समय राव गोंदा ने सूरिजी से अर्ज की कि प्रभो ! आपकी वृद्धावस्था होती चली जा रही है अतः किसी योग्य मुनि को सूरि मंत्र देकर अपने पट्ट पर स्थापन कर दीजिये और यह शुभ कार्य यहीं पर हो कि इसका महोत्सव कर हम लोग कृतार्थ बनें। सूरिजी ने कहा ठीक पूर्व जमाने में आचार्य यक्षदेव सूरि ने इसी नगर में राजकुँवार कक्क को दीक्षा देकर सूरि पद पर स्थापन किया था। यदि आपको ऐसी ही भावना है तो मैं भी विचार करूँगा।
रावजी एवं सकल श्रीसंघ को विश्वास हो गया कि हमारा मनोरथ अवश्य सफल होगा । इधर सूरिजी ने देवी सच्चायका की सम्मति लेकर अपना निश्चय श्रीसंघ के सामने प्रगट कर दिया। बस, फिर तो देरी ही क्या थी। चतुर्मास समाप्त होते ही जिन मन्दिरों में अष्टान्हि का महोत्सवादि प्रारम्म कर दिया। दीक्षा के उम्मेदवारों में भी वृद्धि हो गई । ठीक शुभ मुहूर्त में ६५ नर नारियों को भगवती जैन दीक्षा और मुनि देवभद्र को सूरि पद देकर उनका नाम कक्कसूरि रख दिया और भी कई योग्य मुनियों को पदवियाँ प्रदान कर जैन धर्म का झण्डा फहरा दिया । राव गेंदा ने नूतन सूरिजी की अध्यक्षत्व में पुनीत तीर्थ श्री शत्रुजय का एक विराट संघ निकाला जिसमें रावजी ने नौलक्ष रुपये व्यय कर शासन की प्रभावना की संघ यात्रा कर वापिस आया और सूरिजी सिन्ध भूमि में विहार करने के वाद आप कुँनाल की ओर पधारे। वहाँ भी आपके आज्ञावृत्ति बहुत से साधु साध्वियों बिहार करते थे। उन्होंने सूरिजी के दर्शन कर अपने जीवन को सफल बनाया । सूरिजी महाराज घूमते-घूमते लोहाकोट में पधारे । वहाँ के श्रीसंघ ने आपका अच्छा स्वागत किया । वहाँ पर आप कई अर्सा तक स्थिरता कर जनता को धर्मोपदेश दिया फलस्वरूप ग्यारा भावुकों को दीक्षा दी तथा श्रोष्टि धनदेव के बनाया हुआ भगवान् पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई तत्पश्चात् विहार कर कई ग्राम नगरों में धर्मोपदेश एवं धर्म प्रचार करते हुए सूरिजी महाराज तक्षीला की ओर पधार रहे थे यह शुभ समाचार तक्षीला के श्रीसंघ को मिला तो उनके हर्ष का पार नहीं रहा उन्होंने प्रभावशाली महोत्सव कर सूरिजी का नगर प्रवेश करवाया क्यों न हो उस समय का तक्षिला नगर एक जैनों का केन्द्र था करीबन ५०० तो वहाँ जैन मन्दिर थे इससे अनुमान किया जा सकता है कि उस समय तक्षिला में जैनों की घनी वस्ती और खूब श्राबादी थी। सूरिजी महाराज अन्तिम सलेखना कर रहे थे अतः व्याख्यान आचार्य कक्कसूरिजी बाच रहे थे आपका व्याख्यान हमेशा त्याग वैराग्य तथा तात्विक दार्शनिक एवं अध्यात्मीक विषय पर होता था जो श्रोताजन को अपूर्व आनन्द श्राता था वहाँ भी सूरिजी
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