Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य यक्षदेवमूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ५१५-५५७
गुडानगर में एक आर्यगोत्री लुनाशाह नाम का ओसवाल रहता था उसी नगर में एक महेश्वरी था और उसके एकपुत्री थी पूर्वभव के संस्कारों की प्रेरणा से लुनाशाह ने उस महेश्वरी कन्याके साथ विवाह कर लिया इस पर ओसवाल जाति ने लुनाशाह के साथ अपना व्यवहार तोड़ दिया बादएक सारंगशाह ओसवाल संघ लेकर तीर्थ यात्रा को जाता हुआ गुडानगर में विश्राम लिया लुनाशाह ने गुडानगर के बाहार एक वापि (वावड़ी) बन्धाई थी जिसमें उसने लाखों रुपये लगाये थे । संघपति को पुच्छ ताच्छ करने से मालुम हुआ कि जनोपयोगी कार्य करने वाला लुनाशाह नामका एक श्रेष्टिवर्य यहाँ वसता है संघपति ने लुनाशाह को बुलाकर मिला लुनाशाह ने संघ को भोजन की प्रार्थना की और संघपति ने मंजुर कर ली पर जब संघपति भोजन करने को बेठा तो लुनाशाह को साथ भोजन करने को कहा। इस पर लुनाशाह ने कहा मैं आप के साथ भोजन नहीं कर सकता हूँ कारण मैंने महेश्वरी की कन्या के साथ शादी की है अतः न्यात वालों ने मेरा व्यवहार बन्ध कर रखा है । संघपति ने सोचा की बड़ी जलम की बात है कि एक सदाचारी सामान व्यवहार वाले महेश्वरी की कन्या के साथ सादी करने से क्या अनर्थ हो गया ? संघपति ने जाति वालों को बुला कर बड़ा ही उपालम्ब दिया और अपनी पुत्री लुनाशाह को परणा कर उनका सब व्यवहार शामिल करवा दिया। इस उदाहरण से पाठक समझ सकते हैं कि ओसवाल और महेश्वरी जाति में कुछ भी भेद भाव नहीं है।
कई लोग कहते हैं कि महेश्वरियों की उत्पत्ति हलकी जातियों से हुई है पर इसके लिये कोई प्रमाण नहीं है अतः जहाँ तक प्रमाण न मिले वहाँ तक ऐसी बातों को प्रमाणिक नहीं समझी जाती है। महेश्वरी जाति में भी बहुत से उदार चित्त वाले ऐसे लोग भी हुए हैं कि जिन्होंने देश समाज हित कई चोखे और अनोखे काम किये हैं व्यापार में जैसे अन्य जातियां हैं वैसे महेश्वरी जाति भी है इस ज ति का अयुभ्य भी व्यापार से ही हुआ था ---जैसे अन्योन्य जातियों का पतन हुआ वैसे महेश्वरी जाति भी अपने पतन से बच नहीं सकी है पहले की अपेक्षा इसकी संख्या भी बहुत कम रह गई है।
- महेश्वरी जाति की उत्पत्ति ]
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