Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ११५-१५७ वर्ष ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
होगये । पास में पार्वतीजी भी खड़ी थी उसका रूप योवन लावण्य आदि सौंदर्य देख कर गज कुँवर सज्जन का चित्त चञ्चल और विकार सहित हो गया जिस चेष्टा को देख पार्वती ने उसे श्राप दे दिया कि अरे मंगता जा मांग खा । बस ! फिर तो देरी ही क्या थी राज कुवर सज्जन मंगता बन गया जिसको 'जागा' कहते हैं उसमें एक मिश्रीलाल कायथ था उसको कोतवाल बना दिया जब बहोत्तर उमराव हाथ जोड़ कर बोले हे दयालु हमारे लिए क्या हुक्म है शिवजी ने कहा कि तुम्हारा राज तो दूसरे राजा ने छीन लिया है अब तुम वैश्य पद को धारण कर के तलवार की कलम बनालो भाला की दंडी और ढाल के तराजू के पालने बना कर व्यापार करो। इस बीच में ही ब्राह्मण बोल उठे कि भोला शम्भू ! यह तो आपने ठीक किया परन्तु इन नास्तिकों ने हमारी सामग्री ध्वंश कर हमको बड़ा भारी नुकशान पहुँचाया है इसके लिये आपने क्या फैसला दिया है कहीं हम ब्राह्मण मारे नहीं जावें क्योंकि सामग्री के अभाव से हमारा यज्ञ समाप्त कैसे होंगे ? शिवजी ने कहा कि अभी तो इनके पास कुछ है नहीं कारण इनका राज माल वगैरह तो सब दूसरे राजा ने छीन लिया है अतः यह आपको क्या दे सकें । परन्तु इनका और तुम्हारा ऐसा सम्बन्ध कर दिया जाता है कि इन लोगों के घरों में पुत्र जन्म या विवाह शादी और मृत्यु वगैरह का प्रसंग होगा तब शक्ति के अनुसार तुमको कुछ न कुछ दिया करेंगे शिवजी ने दीर्घ दृष्टि से ब्राह्मणों का सदैव के लिये निर्वाहा कर दिया और वे उमराव सदैव के लिए ब्राह्मणों के करजदार बन गये खैर ! शिवजी का फैसला दोनों पक्ष वालों ने मंजूर कर लिया बाद शिव पार्वती अपने स्थान पर चले गये।
जब वे बहोत्तर उमराव छ ब्राह्मणों के पास गये तो उन ब्राह्मणों ने बारह बारह उमरावों को अपनेर यजमान बना लिये इन पर ही ब्राह्मणों की आजीविका अर्थात् ब्राह्मणों की एक नागीरी बन गई । अब रहा
राजकुँवर सज्जन इसके लिये पार्वतीजी का श्राप था वह जागा के नाम से ७२ उमरावों की वंशावलियों लिख कर अपनी आजीविका करने लगा इत्यादि महेश्वरी जाति का उत्पत्ति बतलाई है ।
इनके अलावा श्रीयुक्त शिवकरणजी रामरतनजी दरक ( महेश्वरी ) मुडवा वाला ने 'इतिहास कन्द्रम महेश्वरी कुल दर्पण" नाम की एक पुस्तक मुद्रित करवाई है उसमें भी महेश्वरी जाति की उत्पत्ति प्रायः उपरोक्त वही भाटों ( जागा ) के मतानुसार ही लिखी है और ये दोनों कथाओं प्रायः मिलती जुलती ही हैं इससे पाया जाता है कि दरक महाशय ने किसी जागा के कथा को नकल ही अपनी किताब में उतार ली हैं विशेषता में दरक महाशय ने उन ७२ उमरावों से महेश्वरी की जातियें बनी जिसके नाम एक कविता में दिया है जिसको भी मैं यहाँ दर्ज कर देता हूँ।
महेश्वरी जाति के ७२ नाम है-सोनी और सोमणी? जाखेड्या३ सौढाणी ॥ दुरकट५ न्याति६ हेडा७ करवा८ काकाणी९ मालु१० सारड़ा, कहाल्या१२ गिलड ३ जाजू१४ || बाहेती ५ विदादा ६ विहाणी १७ वजाजू॥ कलंत्री१९ कासड२० कचौल्या२१ काहलाणी२२ झवर२३ कावरा२४ डाडा२५ डागा२६ गढाणी२ राही२८ विडला२९ दरक३० नौसणीवाल ३१ राजे ॥ अजमेरा३२ भंडारी३३ छपरवाल३४ खोजे ॥ भटडा३५ भूतडा३६ बंग३७ अट्टल ३८ इदाणी३९ ।। भूराड्या४० भन्शाली४१ लढ़ा४२ माल पाणी४२ सिकची४४ लाहौटी४५ गदइया४६ गगुराणी४७ ।। खटखड़ा४८ लखौटया४९ पासवा५. चेचाणी५१ मुणधण्या५२ मुदड़ा५३ चौखड़ा५: चंडक : राजे ॥ वल दवा ६ बालदी:७ बुब५८ बांगडा५९
५५४ Jain Educ n ternational
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[ भगवान महावीर की परम्परा
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