Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ३८८
धर्मयान और शुल्कध्यान इन अष्ठ पुष्पों से भावपूजा करने से जीव का कल्याण होता है इत्यादि" । सागरचन्द्रसूरि का गर्व गलगया और अविनीत शिष्यादि को सुशिक्षा देते हुये कालकाचार्य अनशन समाधि पूर्वक स्वर्ग पधार गये । जैनशासन में कालकाचार्य एक महान प्रभाविक आचार्य हुये हैं ।
आचार्य पादलिप्तसूरी- - आप पाँचवी शताब्दी के एक प्रभाविक श्राचार्य थे । आपके प्रभावोंस्वादक जीवन के लिये बहुत से विद्वानों ने विस्तार से वर्णन किया है पर मैं तों यहां अपने उद्देश्यानुसार केवल सारांश मात्र ही लिखता हूँ ।
कोशलानगरी के अन्दर राजा विजयब्रह्म राज करते थे । वहाँ पर एक बड़ा ही धानाव्य फुल्ल नाम का सेठ बसता था जिसके प्रतिमा नामकी सेठानी थी दम्पत्ति सर्व प्रकार से सुखी होने पर भी उनके कोई सन्तान न होने से वे हमेशा चिन्तातुर रहते थे । अनेक देव देवियों की आराधनादि कई उपाय किये पर उसमें वे सफल नहीं हुये फिर भी उन्होंने अपना उद्यम करना नहीं छोड़ा। एक समय सेठानी ने पार्श्वनाथ की अधिष्ठात्री नागजात की देवी वैरोट्या का महोत्सव पूर्वक तथा अष्टम तप करके आराधन किया अन्तिम रात्रि में देवी ने कहा कि विद्याधर गच्छ के कालकाचार्य की संतान में आचार्य नागहस्ति १ चरण प्रक्षालन के जल का पान कर, तेरे पुत्र होगा। सेठानी देवी के वरदान को तथाऽस्तु कह कर सुबह होते ही वहाँ से चल कर आचार्य श्री के उपाश्रय आई भाग्यवसात् उस समय आचार्य श्री बाहर जाकर आये थे । उनके पैरों का प्रक्षालन कर एक साधु उस पानी को परठने के लिये जा रहा था । सेठानी ने उस पानी से थोड़ा पानी लेकर आचार्य श्री से दशहाथ दूर ठहर कर जलपान कर लिया बाद सूरीजी के पास आकर वन्दन के साथ सब हाल निवेदन कर दिया । इस निमित्त को सुन कर सूरिजी ने कहा श्राविका ! तेरे पुत्र तो होगा पर तू ने मेरे से दश हाथ दूर रह कर जलपान किया है, इस से तेरा पुत्र तेरे से दश योजन दूर मथुरा नगरी में रह कर बड़ा होगा तथा इस पुत्र के बाद नौ पुत्र और भी होंगे। इस पर सेठानी ने कहा कि हे पूज्य ! मैं अपने पहिले पुत्र को आपके अर्पण करती हूँ । क्योंकि मेरे से दूर रहे उससे तो आपके पास रहना अच्छा है। सूरिजी ने कहा भद्रे ! तेरापुत्र बड़ा ही प्रतिभाशाली होगा और जगत का उद्धार करेगा इत्यादि ।
सेठानी ने नागेन्द्र का स्वप्न सूचित गर्भ धारण कर यथा समय पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम नागेन्द्र रख दिया तथा अपनी प्रतिज्ञानुसार सेठानी ने अपने पुत्र को सूरिजी के अर्पण कर दिया । सूरिजी ने कहा कि श्राविका ! हमारी तरफ से इस बालक का तुम पालन पोषण करो । प्रतिमा सेठानी ने गुरु वचन को शिरोधार्य्य करके लड़के का अच्छी तरह से पालन पोषण किया जब नागेन्द्र ८ वर्ष का हुआ तो सूरिजी ने उसको ज्ञानाभ्यास करवा दिया ।
१ – आसीत्कालिकसूरिः श्रीश्रुताम्भोनिधिपारगः । गच्छे विद्याधराख्यस्यायनागहस्ति सूरयः ॥ १५ ॥ खेलादिलब्धिसम्पन्नाः सन्ति त्रिभुवनार्चिताः । पुत्रमिच्छसि चेतेषां पादशौच जलं पिबेः ॥१६॥
२ - साहाथ प्रथमः पुत्रो भवतामर्पितो मया । अस्तु श्रीपूज्यपार्श्वस्थो दूरस्थस्यास्य को गुणः ॥ २२ ॥ ३ - नागेन्द्रास्यां ददौ तस्मै फुल्ल उत्फुल्ललोचनः । आत्तो गुरुभिरागत्य सगर्भाष्टमवार्षिकः ॥ २९ ॥ ४- प्रव्रज्यां प्रददुस्तस्य शुभे लग्ने स्वरोदये । उपादानं गुरोर्हस्तं शिष्यस्य प्राभवे न तु ॥ ३१ ॥ ५ - श्रुस्वेतिगुरुभिः प्रोक्तः शब्देन प्राकृतेन सः । पाकित्तो इति शृङ्गाराग्निप्रदीप्तामिधायिना ॥ ३९ ॥
आचार्य पादलिप्तसू
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