Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ११५ वर्ष
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
९-शकम्भरी के चिंचट गोत्रीय भूरा राजा ने शत्रुजय का संघ निकाला। १०--वैराट नगर के बलाह गोत्रिय शाह राजल ने शत्रुजय का संघ निकाला । ११-जावलीपुर के श्रीमाला नाथा ने शत्रुजय का संघ निकाला।
इनके अलावा आपश्री के शिष्यों प्रशिष्यों के उपदेश से भी कई प्रान्तों से अनेक बार संघ प्रस्थान कर तीर्थों की यात्रा की ओर जीवन को पावन बनाया था।
प्राचार्य श्री के उपदेश से मन्दिरों की प्रतिष्ठा हुई १-मापाणी ग्राम में सुचेती गोत्रीय शाह नांधण के बनाये पार्श्वनाथ मंदिर की प्र० कराई २-विजयपुर में तप्तभट गोत्रीय सुगाल के बनाये विमलदेव के मं० की प्र० कराई। ३-पीतलिया ग्राम में भद्र गोत्रिय स्ग्राम के बनाये शान्तिनाथ मं० की प्र० कराई । ४- ब्रह्मपुरा ग्राम के भूरि गोत्रीय कल्हण के बनाये महावीर मं० की प्र० कराई। ५-गगनपुर में ब्राह्मण जगदेव के बनाये महावीर मं की प्र० कराई। ६-चन्द्रवती बनमाली सरूप के बनाये महावीर मँ० की प्र० कराई। ७-दान्तीपुर श्री श्रीमाल भीखा के बनाये पार्श्वनाथ मं० की प्र० कराई। ८- श्राघाट नगरे चिंचट गोत्रीय शा० भूरा के बनाये महावीर म० की प्र० कराई। ९-दशपुर नगरे बाप्पनाग गोत्रीय हणमत के बनाये महावीर मं० की प्र. कराई । १०-पालोट नगरे मोरक्षा गोत्रिय चोखा शाह के बनाये महावीर म० की प्र० कराई। ११ - लोहाकोट कर्णाटगोत्रीय धनपाल के बनाये महावीर मं० की प्र० कराई। १२-हर्षपुरे श्रेष्ठि गोत्रीय करणा के बनाये पार्श्व० म० की प्र० कराई। १३--- कन्नौज नगरे वीरहट गोत्रीय भाणा के बनाये महावीर म० की प्र० कराई। १४-डिडुनगरे डिडुगोत्रीय शा० जोगा के बनायें महावीर म० की प्र० कराई।
यह तो केवल नमूने के तौर पर लिखा है पर इतने सुदीर्घकाल में स्वयं प्राचार्यश्री तथा आपश्री के आज्ञावृति मुनियों के उपदेश से तीर्थों के संघ भावुकों की दीक्षा और मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्टाओं के विषय में तथा एक एक प्राचार्यों ने जो शासन का कार्य किया है उसको लिखा जाय तो एक स्वतंत्र ग्रन्थ बन जाता है । आचार्यश्री के उपदेश से लाखों मांस मदिरा सेवियों ने जैनधर्म स्वीकार किया था । यही कारण था कि उस समय जैनों की संख्या करोड़ों तक पहुँच गई थी। इस प्रकार उन आचार्य देवों का जैन समाज पर इतना उपकार हुआ है कि जिसको हम एक क्षण भी नहीं भूल सकते। पट्ट सोलहवें अतिशय धारी, रत्नमम सूरीश्वर थे।
प्रतिभाशाली उपविहारी, अज्ञ हरण दिनेश्वर थे॥ प्रथम पूज्य का पढ़ कर जीवन, ज्योति पुनः जगाई थी।
करके नत मस्तक वादी का, धर्म की प्रभा बढ़ाई थी। ॥ इति श्री भगवान पार्श्वनाथ के १६ वें पट्ट पर आचार्य रत्नप्रभसूरि महाप्रभावी हुये ।। Jain Ed 8 Rnternational
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