Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ११५-१५७ वर्ष
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
. शुभ मुहूर्त में ब्राह्मणों ने यज्ञ प्रारम्भ कर दिया बहुत से निरापराधि मूक् प्राणियों को बली के लिए एकत्र किये पर यह तो था नरमेध यज्ञ इसके लिए तो किसी लक्षण संयुक्त मनुष्य की आवश्यकता थी राजा के आज्ञाकारी आदमी एक ऐसे पुरुष की तलाश में सर्वत्र घूम रहे थे फिरते २ वे स्मशानों की
ओर चले गये वहाँ एक दिगम्बर जैन मुनि ध्यान में खड़ा था उसको योग्य समझ कर वे आदमी उस मुनि को ही पकड़ कर यज्ञ शाला में ले आये जिसको देख कर ब्राह्मणों ने बड़ी खुशी मनाई कारण यज्ञ के नेपेध करने वाले का ही यज्ञ में बली दी जाय इससे बढ़ कर ब्राह्मणों को और क्या खुशी होती है।
जैन मुनि ने वहाँ का रंग ढंग देख कर जान लिया कि इस यज्ञ में मेरी बली होने वाली है पर उस ब्राह्मणों के साम्राज्य में विचारा वह मुनि कर भी तो क्या सकता था कारण धर्म के रक्षक राजा होता है तब खुद राजा ही इस प्रकार का अत्याचार करे तो फिर रक्षा करने वाला ही कौन ? मुनि ने विचार किया कि केवल मेरे लिये ही यह कार्य नहीं है पर पूर्व जमाने में ऐसे अनेक कार्य बन चुके हैं जैसे गजसुखमाल मुनि के सिर पर अग्नि के अंगारे ब्राह्मण ने ही रखा था स्वंदक मुनि की खाल भी ब्राह्मणों ने उत्तरी थी खंदकाचार्य के पांच सौ मुनियों को ब्राह्मणों ने चानी में डालकर पिला दिये थे और निमूची ब्राह्मण ने जैन मुनियों को देश पार हो जाने की आज्ञा दे दी थी इत्यादि । पर इस प्रकार के अत्याचारों के सामने भी जैनमुनियों ने समभाव रखकर अपनी सहन शीलता का परिचय दिया था आज मेरी कसोटी का समय है उन महापुरुषों का अनुसरण मुझे भी करना चाहिये बस ! मुनि अपनी आलोचना प्रतिक्रमण कर कर्मों से युद्ध करने को केसरिया करके तैयार हो गया । बाद, उन निर्दय दैत्यों यानी ब्राह्मणों ने उन महर्षि मुनि को बली के नाम पर ज्वाजल्यमान अग्नि में डाल कर भस्म भूत कर डाला परन्तु लोही का खरड़ा हुआ कपड़ा लोही से धोने से साफ थोड़ा ही होता है वह तो डबल रक्त रंजित हो जाता है यही हाल ब्राह्मणों का हुआ क्योंकि पापोदय से तो भयंकर रोग पैदा हुआ था और उसकी शान्ति के लिये एक महान तपस्वी जो जगत का उद्धार करने वाले मुनि को बुरी हालत से मार डालना यह तो महा घातकी पातक था इससे तो रोग ने और भी भयंकर रूप धारण कर जनता में त्राहि २ मचादी राजा से उस त्रास हालत को देखी नहीं गई जब ब्राह्मणों को बुलाकर राजा ने कहा तो ब्राह्मणों का तो स्वार्थ सिद्ध होने से उनके तो शान्ति हो ही गई थी ब्राह्मणों ने कहा 'हरेच्छ' ईश्वर की यही इच्छा है इनके अलावा बिचारे ब्राह्मण कह भी तो क्या सकते भाग्यवशात वे ब्राह्मण तथा उनका कुटुम्ब भी तो रोग के कवलिये बन रहे थे।
एक दिन राजा खड़गसेन मुनिहिंसा की फिक्र करता हुआ रात्रि में सो रहा था अर्द्ध निद्रावस्था में राजा क्या देखता है कि वह नग्न मुनि राजा के पास आया और कहा कि राजन् ! तूने बड़ा भारी अन्याय किया है इस अन्याय का फल तुमको और ब्राह्मणों को नरक में भोगना पड़ेगा चल मैं तुझे नरक दिखा देता हूँ राजा को नरक में ले गया तो वहां अग्नि के कुण्ड जल रहे हैं यम लोग पापीष्ट जीवों को जबरन अग्नि में डाल रहे हैं इत्यादि घोर वेदना को देख राजा थरथर कांपने लग गया । फिर वापिस अपने स्थान पर आया तो राजा ने मुनि से दीन स्वर से प्रार्थना की कि हे मुनि ! मैंने ब्राह्मणों के चक्र में पड़ हर अज्ञानता से महान पातक कर डाला है इसका फल सिवाय नरक के हो ही नहीं सकता है पर आप परोपकारी महात्मा हैं कृपाकर मुझे ऐसा गस्ता बतला कि मैं इस पाप से मुक्त होकर अच्छे स्थान जाने जैसा कार्य कर सकू ? इस पर मुनि ने कहा राजन् ! यदि मैं चाहता तो उसी समय ब्राह्मणों सहित नगर को नष्ट कर डालता पर
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[ भगवान् महावीर की परम्परा
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