Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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नाचार्य यक्षदेवसरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ५१५-५५७
५-- फोफला प्राम में मल्ल गोत्रिय शा० हाणा के बनाये महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। ६-कीराटपुर के श्रीमाल हणमन्त के बनाये शान्तिनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई । ७-हंसावली आदित्यनागगोत्रिय हरदेव के बनाये महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई । ८-चन्द्रावती नगरी के श्रेष्ठि गोत्रिय मन्त्री भुवन के बनाये पार्श्वनाथ महावीर की प्रतिष्ठः कराई। ९- पद्मावती के बापनागगोत्रिय शाह चुडा के बनाये महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। १०-उच नगर का राव मालदे के बनाये पार्श्वनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई । ११-मरुनगर के मन्त्री सारंग के बनाये पार्श्वनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। १२-राजपुर के श्रेष्टिगोनिय शाह नोधण के बनाये महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। १३-देवली के बाप्पनागगोत्रिय शाह खेमा के बनाये आदिनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई । १४-~-पुनेटी के चिंचट गोत्रिय शाह हरदेव के बनाये महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। १५-चन्द्रपुर के चरडगोत्रिय शाह अंबड के बनाये शान्तिनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। १६---अर्जुनपुरी के आदित्यनाग गोत्रिय शाह बाना के बनाये विमलदेव की मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। १७–पालिकापुरी के बलहा गोत्रिय शाह खेतड़ के बनाये नेमिनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। १८-उपकेशपुर के भाद्रगोत्रिय शाह नोढा के बनाये मल्लिनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। १९-खेलचीपुर के कुमटगोत्रिय शाह जीवण के वनाये शीतलनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। २० -विजयपुर के प्राग्वट वंशीय शाह धरमशी के बनाये पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई ।
इनके अलावा भी संख्यावद्ध मन्दिरों की प्रतिष्ठायें सूरिजी एवं आपके मुनियों ने करवाई थी। इससे पाया जाता है कि उस समय जैन जनता की मन्दिर मूर्तियों पर अटूट श्रद्धा थी। और इस पुनीत कार्य में द्रव्य लगाने में वे अपने द्रव्यकी सफलता भी समझते थे तभी तो एक एक धर्म कार्य में वे लाखों रुपये व्यय कर डालते थे और इन पुन्य कार्यों के कारण ही उनके अनाप शनाप द्रव्य बढ़ता था। उस समय महाजन संघ का खूब ही अभ्युदय था । उनका पुन्य रूपी सूर्य मध्याह्न में तप रहा था वे बड़े ही हलुकर्मी थे कि उनको थोड़ा भी उपदेश विशेष असरकारी हो जाता था उनकी देवगुरु और धर्म पर अटूट श्रद्धा थी।
आचार्य यक्षदेवसूरि ने ४२ वर्ष तक अपने शासन में अनेक प्रकार से जैनधर्म की उन्नति की और में वी. नि० सं० ६२७ में पुनीत तीर्थ श्री तक्षिला में २७ दिन का अनशन एवं समाधिपूर्वक स्वर्ग पधार गये। सप्तदश श्री यक्षदेवमूरि, दशपूर्व ज्ञान के धारी थे ।
बज्रसेन के शिष्यों को दिना, ज्ञान बड़े दातारी थे । चन्द्र नागेन्द्र निति निद्याधर, कुल चारों के विधाता थे ।
उपकार जिनका है अतिभारी, भूला कभी नहीं जाता है ॥ इति श्री भगवान पार्श्वनाथ के सतरहवें पट्ट पर प्राचार्य यक्षदेवसूरि महाप्रभाविक आचार्य हुये।
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आचार्य श्री के शासन में J
Jain E आचार्य
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