Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ४५२
नागार्जुन पादलिप्तसूरि का इतना श्रद्धा सम्पन्न परमभक्त बन गया कि सिद्धगिरि तीर्थ की तलेटी में एक नगर बसा कर उसका नाम गुरु की स्मृति के लिए पादलिप्तपुर रख दिया जो आज पालीताना के नाम से प्रसिद्ध है और शत्रुजय तीर्थ पर एक महावीर का मंदिर बनाया तथा एक गुरु पादलिप्तसूरि की मूर्ति बनाई जिसकी प्रतिष्ठा पादलिप्त सूर ने करवाई तथा सूरिजी ने महावीर प्रभु की स्तुति रूप दो गाथा बनाई जिसमें सुवर्ण सिद्धि और आकाश गामिनी विद्यायें गुप्तपने रही पर वे किसी भाग्याशली को प्राप्त हो सकती है। कलियुगियों के लिये नहीं।
एक समय प्रतिष्ठनपुर के राजा सातबाहन ने भरोंच के राजा बलमित्र पर आक्रमण किया जिसको १२ वर्ष हो गये परन्तु किसी को भी सफलता नहीं मिली। उस समय नागार्जुन योगी वहाँ पाया और उसकी बुद्धि चातुर्य से सातबाहन को सफलता मिली अतः सातबाहन विजयी होकर अपने नगर को लौट गया।
____एक वक्त राजा सातबाहन की सभा में शास्त्रों का संक्षिप्त सार बतलाने वाले चार कवि आये और उन्होंने कहा कि हे राजन् !
१-जीर्णे भोजनात्रियः--आत्रेयर्षि ने कहा है कि वैद्यकशास्त्र का सार यह है कि पूर्व किया हुआ भोजन पचने पर नया भोजन करना।
२- कपिलः-प्राणिनांदया-कपिलर्षि ने कहा है कि धर्म शास्त्र का सार है कि प्राणियों की दया करना।
३-वृहस्पतिरविश्वासः-वृहस्पतिर्षि ने कहा है कि नीति शास्त्र का सार है कि किसी का भी विश्वास नहीं करना।
४-पांचालः स्त्रीषु मार्दवम्-पांचाल कवि ने कहा है कि काम शास्त्र का सार है कि स्त्रियों से मृदुता रखना।
इसको सुनकर राजा ने प्रसन्न हो उनको महादान दिया, पर कवियों ने कहा कि राजन् ! यह क्या बात है कि तुम्हारा परिवार हमारे शास्त्र की कोई तारीफ नहीं करता है। इस पर राजा ने अपनी भोगवती वारांगना से कहा कि तू इन कवियों की तारीफ कर । उसने जवाब दिया क मैं सिवाय पादलिप्तसूरि के किसी की तारीफ नहीं करती हूँ और इस जगत में पादलिप्तसूरि के अलावा कोई तारीफ योग्य है भी नहीं। इस पर किसी शंकर नामक मत्सरी ने कहा कि यदि किसी मृत्यु पाये हुये को जीवित कर दें तो मैं पादलिप्त को चमत्कारी समझू वरना केवल आकाश में फिरने से क्या लाभ है ? क्योंकि ऐसे तो बहुत से पक्षी आकाश में गमनागमन करते हैं । भोगवती ने कहा कि यह भी कोई बड़ी बात नहीं है, पादलिप्तसूरि के पास यह विद्या भी होगी ही।
आचार्य पादलिप्तसूरि उस समय राजाकृष्ण के आग्रह से मानखेट: नगर में रहता था। अतः राजा 28 इतः पृथ्वीप्रतिष्ठाने नगरे सातवाहनः । सार्वभौमोपमः श्रीमान्नृप आसीदगुणावनिः ॥३०७॥ तथा श्रीकालकावार्य स्वस्रीयोः श्रीयशोनिधिः । भृगुकच्छपुरं पाति बलमित्राभिधोनृपः ॥३०८॥
अन्येद्युः पुरमेतच्च रुरुधे सातवाहनः । द्वादशाष्टानि तत्रास्थाद्वहिनं व्याहतंभवत् ॥३०९॥ । जीर्णे भोजनमात्रेयः कपिलः प्राणिनांदया। बृहस्पतिरविश्वासः पांचालस्वापु मार्दवम् ॥६२०॥
* मानखेटपुरात् कृष्णमापृच्छय्य स भूपतिः । श्रीपादलिप्तमाह्रासीदेतस्मादेव कौतुकात् ॥३२७॥ प्र० च० सिद्ध नागार्जुन ]
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