Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० पू० १८२ वर्ष ।
[ भगवान् पाश्वनाथ की परम्परा का इतिहास
राजा से और यह भी संभव है कि राजा खारवेल स्वयं ही हों । जिस खारवेल ने शिलालेख के अनुसार पातालिका चेटक और वैडूर्य गर्भ में अर्हन्तों के स्थान के निकट पर्वत की चोटी पर स्तम्भ और गुफायें चतुर कारीगरों से बनवाई-(नोट-ये पातालिक आदि कौन स्थान हैं इनका पता लगाना उचित है । )
। इस समय से पीछे की बनावट के चिह्न कुछ गुफाओं में हैं जैसे नवमुनिगुफा छोटी हाथीगुफा व गणेश गुफा के शिलालेख और संभव है कि खंडगिरि की कुछ तीर्थंकरों की मूर्तियां भी (सिवाय अनंत गुफा के ) ऐसी ही हों
___ आठवीं से ११ वीं शताब्दी तक दक्षिण में जैनी बहुत प्रभावशाली थे (देखो भंडारकर का पूर्व इतिहास दक्षिण का सन् १८९६ का सफा ५९) और इन लेखों के अक्षर इस समय के अक्षरों से मिलते हैं । यह जाना नहीं गया कि किस तरह जैनियों ने अपना अधिकार खोया परन्तु यह मालूम होता है कि वैष्णवों की उन्नति होने से जैनियों पर उनका अन्याय एवं अत्याचार हुआ होगा।।
तथा ताड़पत्रों के लेखोंसे प्रगट है कि ब्राह्मणों की प्रेरणा से गंगराजा ने भी जैनियों को बहुत सताया ।
अंग्रेजी राज्य में कटक के जैन परवारों ने खंडगिरि के ऊपर एकमंदिर बनवाया तथा बारह भुजा और त्रिशुल गुफा के बरामदों को दुरुस्त कराया और इन दोनों गुफाओं के सामने एक छोटा मंदिर बनवाया ।
( देखो एम० ५.च० चक्रवती नीट गुफा यो पर सन् १९०२) यदि इस प्रकार पूर्व प्रान्तीय गुफाएँ वगैरह जैन स्मारकों को लिखा जाय तो एक बृहद् प्रन्थ बन जाता है । तथा पूर्व के अलावा दक्षिण वगैरह में भी जैन श्रमणों के लिये इस प्रकार अनेक गुफाए का पता मिला है तथा प्राचीन जैन मन्दिर मूर्तियों के भी काफी तादाद में उल्लेख एवं भग्न खण्डहर मिला है तथापि मैंने तो यहां केवल नमूना के तौर पर प्राचीनता का थोड़ा सा दिग्दर्शन करवाया है कि इसको पढ़ कर जैनोपासकों के नशों में अपने पूर्वजों का एवं पूर्व जमाना में जैनधर्म की जाहोजलाली का खून बहने लग जाय और वे अपने कर्त्तव्य पर कमर कस कर कटिवद्ध हो जाय । अस्तु ।
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