Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ओसवाल संवत् ३८८ भगवान महाकीर की परम्पराआचार्य उमास्वाति-आपका जन्म न्यग्रोधिका प्राम के ब्राह्मण स्वाति की भार्या उमा की कुक्ष से हुआ था । आर्य महागिरि के शिष्य बलिसिंह के आप शिष्य थे जैसे पद्दावली में लिखा है कि
___"श्री आर्य महागिरेस्तु शिष्यौ बहुल-वलिस्सहौ यमल भ्रातरौ तस्य बलिस्सह स्य शिष्यः स्वाति, तत्त्वार्थादयो ग्रन्थास्तु तत्कृता एव संभाव्यते"
पट्टावली समुच्य पृष्ठ ४६ __ आचार्य उमास्वाति ने केवल एक तत्त्वार्थ सूत्र ही नहीं बनाया पर आप श्री ने ५०० ग्रन्थों की रचना की थी आचार्यवादीदेवसूरि अपने स्याद्वाद रत्नाकर में लिखते हैं कि--
___ "पंचशती प्रकरण प्रणयन प्रवीणौस्त्र भवदभरुमा स्वाति वाचक मुख्यै”
आर्य उमास्वाति के समय के विषय कुछ मतभेद है । कारण, तत्त्वार्थ के भाष्य में स्वयं उमास्वाति महाराज लिखते हैं कि मैं उच्चनागोरी शाखा का हूँ। तब कल्प स्थविरावली में प्रार्यदिन्न के शिष्यशान्तिश्रेणिक से उन्चनागोरी शाखा का प्रादुर्भाव हुआ लिखा है । जब आर्य दिन्न का समय वी. नि. ४५१ के आस पास है तो उसके बाद उमास्वाति हुये होंगे । तब प्रज्ञापन्नासूत्र की टीका में लिखा है कि आर्य उमास्वाति के शिष्य श्यामाचार्य ने प्रज्ञापन्ना सूत्र की रचना की और आपका समय वी.नि. ३३५ से ३७६ का बतलाया है। इससे यही मानना युक्तियुक्त है कि उमास्वति महाराज आर्यबलिस्सह के शिष्य और श्यामाचार्य के गुरु थे और आपका समय वी. नि० की चतुर्थ शताब्दी का ही था ।
श्यामाचाये-आप वाचक उमास्वाति के शिष्य थे और प्रज्ञापन्नासूत्र की संकलना की थी वह आज भी पैंतालीस आगमों के अन्दर उपांग सूत्र में विद्यमान है । प्रस्तुत प्रज्ञापन्ना सूत्र में जो प्रश्नोत्तर किये गये हैं वह सब गौतम स्वामी ने प्रश्न पूछे हैं और भगवान महावीर ने उत्तर दिये हैं। इससे पाया जाता है कि यह सूत्र तो पूर्व का ही होगा परन्तु इसकी संकलना श्यामाचार्य ने की होगी।
प्रज्ञापन्नासूत्र- छत्तीस पदों से विभूषित है । प्रत्येक पद तात्विक एवं वैज्ञानिक विषय से ओत प्रोत है जिसका संक्षिप्त से दिग्दर्शन मात्र यहाँ करवा दिया जाता है ।
१--पहले पद में-जीव अजीव की प्ररूपणा है जिसमें जीव की प्ररूपना विस्तार से है २-दूसरे पद में-चौबीस दंडक के स्थानाधिकार हैं । यह पद भी खूब विवरण के साथ लिखा है ३-तीसरे पद में-महादंडक तमाम जीवों की अल्पाबहुत करके समझाया है। ४ - चौथे पद में तमाम जीवों के पर्याप्ता अपर्याप्ता की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति का वर्णन है। ५ -पाँचवें पद में-जीव अजीव पर्याय का वर्णन है इसमें संसार भर का विज्ञान है । ६-छट्टे पद में-चराचर जीवों की गति एवं आगति का वर्णन है । ७-सातवां पद में-श्वासोश्वास का अधिकार है। ८-पाठवां पद में-दश प्रकार की संज्ञा का वर्णन है । ९-नौवा पद में-सांसारिक जीवों की योनि का विस्तार है ।
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