Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ३८८
साथ में लेकर उज्जैन की ओर चलधरे । गर्दभिल्ल : को इस बात का पता लग गया कि उज्जैन पर शकों की सैना आ रही है पर उसने न तो लड़ाई का सामान तैयार किया न सैना को सजाया और न किल्ला एवं नगर का द्वार ही बन्द किया । इसका कारण यह था कि उसके पास गर्दभिविद्या थी। उसकी साधना करने पर वह गदभि के रूप में आती थी और किले पर खड़ी रह कर इस प्रकार का शब्दोचारण करती थी कि पाँच-पाँच मील पर जो कोई मनुष्य होता तो मर ही जाता था। इस गर्व में उसने किसी प्रकार की तैयारी नहीं की पर गर्दभिल्ल के विद्या अष्टमी चतुर्दशी को ही सिद्ध होती थी। शक राजा पहिले ही पहुँच गये थे अतः संग्राम शुरू हो गया पर गर्दभिल्ल की सैना भाग कर किले में चली गई। तब गर्दभिल्ल संग्राम बन्द कर विद्या साधने में लग गया ! वातावरण सर्वत्र शान्त देख शकों ने कालकाचार्य से पूछा कि इस शान्ति का क्या कारण है ? सूरिजी ने कहा गर्दभिल्ल गर्दभि विद्या साध रहा है । आप सब लोग अपनी-अपनी सेना लेकर पांच मील से दूर चले जाओ केवल १०८ विश्वासपात्र एवं होशियार बाणधारी सुभट मेरे पास रख दो शकों x ने ऐसा ही किया । सूरिजी ने उन वाणधारियों को समझा दिया कि आप अपना बाण साधकर तैयार रहो कि किल्ले पर जिस समय गर्दभि शब्दोचारण करने को मुँह फाड़े उस समय सब ही एक साथ में गर्दभि के फटे हुए मुँह में बाण फेंक कर उसका मुँह भर दो, बस । आपकी विजय हो जायगी। फिर तो था ही क्या, उन विजयाकांक्षियों ने ऐसा ही किया अर्थात् ज्यों ही गर्दभि ने मुंह फाड़ा त्यों ही उन वाणधारियों ने बाण चलाये और गर्दभि का मुंह वाणों से भर दिया, वह एक शब्द भी उच्चारण नहीं कर सकी। अतः गर्दभि को बहुत गुस्सा आया और वह गर्दभिल्ल पर नाराज हो उसके शिर पर भृष्टा और पेशाव करके एवं पदाघात कर चली गई। इस हालत में शकों ने धावा बोल दिया वस लीला मात्र में गर्दभिल्ल को पकड़ कर कालकाचार्य के पास लाये । गर्दभिल्ल ने लज्जा के मारे मुँह नीचा कर लिया। कालकाचार्य ने कहा "अरे दुष्ट ! एक सती साध्वी पर अत्याचार करने का यह तो नाम मात्र फल मिला है पर इसका पूरा फल तो नरकादि गति में ही मिलेगा इत्यादि । शक लोग गर्दभिल्ल को जान से मार डालना चाहते थे पर कालकसूरि ने दया लाकर उसको जीवित छुड़ा दिया । गर्दमिल्ल वहाँ से मुँह लेकर जंगल में चला गया वहाँ एक शेर ने उसे मार डाला अतः वह मर कर नरक में गया ।
कालकाचार्य सरस्वती साध्वी को छुड़ाकर लाये और पराधीनता में साध्वी को जो कुछ अतिचार लगा उसकी आलोचना२ देकर उसे पुनः साध्वियों में शामिल करदी तथा स्वयं सूरिजी ने जैन धर्म की रक्षा के लिये सावध कार्यों में प्रवृति की उसकी आलोचना करके शुद्ध हुये और पुनः गच्छ का भार अपने शिर पर लिया। ___ जैनधर्म में उत्सर्गोपवाद दो मार्ग बतलाये हैं । जब आपत्ति आजाती है तब अपवाद मार्ग को ग्रहण कर जैन धर्म की रक्षा करनी पड़ती है जैसे ब्रष्णुकुमार ने महामिथ्या दृष्टि जिन शासन के कट्टर द्वेषी निमूची को सजा
* श्रुत्वापि बलमागच्छन् विद्यासामर्थ्यगर्वितः । गर्दभिल्लनरेन्द्रो न पुरीदुर्गमसज्जयत् ॥६॥ ___ अथाप शाखिसैन्यं च विशालातलभेदिनीम् । पतङ्गसैन्यवत्सर्व प्राणिवर्गभयंकरम् ॥६९॥ x इत्यायं कृते तत्र देशे कालक सदगतः। सभटानां शतं साष्टं प्रार्थयच्छन्दवेधिनाम् ॥७॥
स्थापिताः स्वसमीपे ते लब्ध लक्षाः सुरक्षिताः । स्वरकाले मुखं तस्या बभ्रु (भौ) | (बा) णैर्निपङ्गवत् ॥७॥ ५४ -गर्दभिल्ल का उच्छेद
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