Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० पू० १८२ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
इसके बाद फिर कल्कि उत्पात मचाएगा, पाखंडियों के वेष छिनवा लेगा और श्रमणों पर भी अत्याचार करेगा । उस समय कल्प व्यवहार धारी तपस्वी युग प्रधान आचार्य पाडिवत तथा दूसरे साधु छ? अट्ठम का तप करेंगे। तब कुछ समय के बाद नगर देवता कल्की से कहेगा -- अरे निर्दयी ! तू श्रमण संघ को तकलीफ देकर क्यों जल्दी मरने की तैयारी कर रहा है ? जरा सबर कर, तेरे पापों का घड़ा भर गया है ।' नगर देवता की इस धमकी की कुछ भी परवाह न करता हुआ वह साधुओं से भिक्षा का षष्ठांश वसूल करने के लिये उन्हें बाड़े में कैद करेगा। साधु गण सहायतार्थ इन्द्र का ध्यान करेंगे, तब अंबा और यज्ञ कल्की को चेताएँगे, पर वह किसी की नहीं सुनेगा। आखिर में संघ के कायोत्सर्ग ध्यान के प्रभाव से इन्द्र का आसन कॅपेगा और वह ज्ञान से संघ का उपसर्ग देखकर जल्दी वहां आएगा । धर्म की बुद्धि वाला
और अधर्म का विरोधी वह दक्षिण लोक पति (इन्द्र ) जिन प्रवचन के विरोधी कल्कि का तत्काल नाश करेगा।
उग्रकर्मा कल्की उग्रनीति से राज करके ८६ वर्ष की उमर में निर्वाण से २००० वर्ष बीतने पर इंद्र के हाथ से मृत्यू पाएगा । तब इंद्र कल्कि के पुत्र दत्त को हित शिक्षा दे श्रमणसंघ की पूजा करके अपने स्थान पर चला जाएगा।' इत्यादि
(तित्थोगाली पइन्ना का अनुवाद) 'गौतम-भगवन् ! श्रीप्रभनामक अनगार किस समय होगा ?'
महावीर -- 'हे गौतम ! जिस वक्त निकृष्ट लक्षणवाला, अद्रष्टव्य, रौद्र, उप्र और क्रोधी प्रकृति वाला, उपदंड देनेवाला, मर्यादा और दया हीन अति क्रूर और पाप बुद्धिवाला, अनार्य, मिथ्या दृष्टि ऐसा कल्की नाम का राजा होगा; जो पापी श्रमणसंघ की भिक्षा के निमित्त कदर्थना करेगा, और उस वक्त जो शील समृद्ध और सत्यवंत साधु होंगे उनकी ऐरावतगामी वज्रपाणि इंद्र आकर सहायता करेगा । उस समय श्रीप्रभ नामक अनगार होगा।'
महानिशीध, पाँचवाँ अध्ययन इनके अलावा भी कई प्रन्यों में कल्की का अधिकार लिखा मिलता है पर सब का सारांश एक ही है कि कल्की एक महा अत्याचारी धर्मान्ध धर्म द्वेषी होगा और वह साधुओं को कष्ट देगा और इंद्र के हाथों से मारा जायगा । इत्यादि
(२) बोद्ध ग्रन्थकारों का मत है कि
बौद्धों के प्रन्थों में भी पुष्यमित्र के विषय में लिखा है कि पुष्यधर्मा के पुत्र पुष्यमित्र ने अपने मंत्रियों से पूछा-ऐसा कौन उपाय है जिससे हमारा नाम हो ? मंत्रियों ने कहा-महाराज आपके वंश में राजा अशोक हुआ जिसने ८४००० धर्मराजिका स्थापित करके अपनी कीर्ति अचल की जो जहां तक भगवान (बुद्ध) का शासन रहेगा वहां तक रहेगी ! आप भी ऐसा कीजिये ताकि आपका नाम अमर हो जाय । पुष्यमित्र ने कहा-राजा अशोक तो बड़ा था हमारे लिए कोई दूसरा उपाय है ? यह सुनकर उसके एक अश्रद्धावान् ब्राह्मण ने कहा -- देव ! दो कारणों से नाम अमर होगा। x x x गजा पुष्यमित्र चतुरंग सेना को सज्जित न करके भगवच्छासन का नाश करने की बुद्धि से कुकुटाराम की
ओर गया, पर द्वार पर जाते ही घोर सिंहनाद हुआ जिससे भयभीत होकर राजा वापिस पाटलीपुत्र को चला आया ।दूसरी और तीसरी बार भी यही बात हुई । आखिर में राजा ने भिक्षु और संघ को बुला
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