Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य यक्षदेवसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् २१८
मगद देश का राजा पुष्पमित्र या कल्की अवतार
मगध का राजा पुष्यमित्र - पाठक पहले पढ़ आये हैं कि मगध के सिंहासन पर मौर्य वंशी अंतिम राजा वृहद्रथ राज करता था। उसके मंत्री पुष्यमित्र था जोकि अपने स्वामी को विश्वासघात से मार कर स्वयं मगद का राजा बन गया था ।
जब से मगध की राजसत्ता पुष्यमित्र के हाथ में आई तब से ही वहां के जैन एवं बौद्धों के दिन बदल गये । कारण पुष्यमित्र कट्टर वेदानुयायी था । पर गत तीन चार शताब्दियों में शिशुनागवंशी, नंदवंशी और मौर्यवंशी जितने राजा हुए वे सब के सब जैन एवं बौद्ध धर्मोपासक थे और उन्होंने यज्ञ हिंसा के विरुद्ध उपदेश कर जनता को 'अहिंसा परमोधर्म' के परम उपासक बना दिये थे अतः ब्राह्मण धर्म कमजोर होकर मृत्यु शय्या पर अंतिम श्वासोच्छवास ले रहा था। ऐसी अवस्था में पुष्यमित्र ने मृत प्राय ब्राह्मण धर्म में पुनः जान डालकर उसे पैरों पर खड़ा किया |
जैनों ने अपनी सत्ता के समय में किसी दूसरे धर्म पर अत्याचार नहीं किया पर राजोचित सभी धर्मों का सकार किया था एवं अशोक के समय बौद्ध धर्म की प्रबलता होने पर भी श्रमणों एवं ब्राह्मणों का सरकार होता था । पर पुष्यमित्र ने धर्मांधता के कारण अपने हाथ में राजसत्ता आते ही जैनों एवं बौद्धों पर जुल्म गुजारना शुरू कर दिया, यहां तक कि जैन मंदिरोपाश्रय, बौद्ध मंदिर मठ आदि तोड़ फोड़कर नष्ट भ्रष्ट कर डाले, जैन एवं बौद्ध साधुओं को कत्ल करा दिये, कईयों को कारागृह में ठूंस दिये, कइयों के भेष छीन लिये गये, कई भिक्षा लाते थे उनकी भिक्षा से भी कर लेने के लिये उनको तंग करता था, कर न देने से उनको कैद कर उनकी बुरी हालत करता था जिसका रोमांचकारी वर्णन जैन और बौद्ध ग्रंथों में अद्यावधि विद्यमान है । यही कारण है कि कई जैन श्रमणों और बौद्ध भिक्षुओं ने मगध देश का त्याग कर एवं अन्य प्रांतों में जाकर अपने प्राण बचाये ।
कई विद्वानों का मत है कि शास्त्रों में कल्कि की कथा लिखी गई है शायद वह कल्कि राजा पुष्यमित्र ही हो। क्योंकि इनके जीवन की बहुत सी घटनाएं कल्कि से मिलती हुई हैं ।
जैन, बौद्ध और पुराणकारों ने अपने २ ग्रंथों में कल्कि का वर्णन किया है। यदि लक्ष देकर देखा जाय तो उन तीनों धर्म के लेखकों की प्राय: सब घटनाएं मिली जुलती हैं जिसको मैं यहां संक्षिप्त से लिख देता हूँ ।
( १ ) कल्कि के विषय में जैन ग्रंथ कारों का मत कि— वीर जिणागुणवीसं सरहिं पणमास बारवरिसेहिं ।
चंडाल कु होही, पाडलपुरि समण पडिकूलो || ४४ ॥ चित्तमि विभिवो, ककी १ रुद्धो२ चउमुह३ ति नामा ॥
'वीर निर्वाण से १९९२ वर्ष और ५ मास बीतने पर पाटलिपुत्र नगर में चंडाल के कुल में चैत्र कोटमी के दिन श्रमणों ( साधुओं) का विरोधी जन्मेगा जिसके तीन नाम होंगे - १कल्की, २ रुद्र,
३ चतुर्मुख ।
- धर्मघोषसूरिकृत कालसप्ततिका ।
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