Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य यक्षदेवसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् २१८
से महाराजा खारवेल ने जैन रहने पर भी प्राचीन प्रथा के उद्धार के हेतु इस शुभ यात्रा का अनुष्टान किया था । पुरातन प्रथाओं के प्रति महाराजा खारवेल की इस तरह भक्ति देखकर देशवासी लोग अत्यंत संतुष्ट हुए । बारहवें वर्ष में उत्तरा पथ और मगध विजय के उपलक्ष में तथा पांड्य राजा से जो विपुल धन रत्न श्रादि प्राप्त हुए थे उनकी रक्षा करने लिये अपनी राजधानी में अनेक अट्टालिकाओं का निर्माण कराया
था। ये सब अट्टालिकाएं नाना विचित्र कारुकाओं से मंडित थीं ।
महाराजा खारवेल:5:- उत्तरापथ से पांड्य राज्य पर्यन्त अर्थात हिमालय से कन्या कुमारी अंतरीय तक भारतवर्ष में अपने राज्य और प्रभुत्व विस्तार कर राजाधिराज हुए थे। इससे उनकी उच्च अभिलाषाओं की पूर्ति यथेष्ट परिमाण मे हुई। इसी से १२ वें वर्ष के अनंतर उनने और लड़ाई कर राज्य विजय करने की इच्छा त्याग कर एक तरह से संन्यास धर्म का अवलंबन किया और पवित्रता मय जीवन व्यतीत करने लगे । उदयगिरि में अर्हन्त और जैन लोगों के लिये बहुत से मंदिर निर्माण और स्वयं आत्म ध्यान धरने के लिये वहीं पर एक सुन्दर अट्टालिका बनवाई | संभव है कि उदयगिरिस्थित रानी हंसपुर की वहीं अट्टालिका हो । हाथीगुफा भी उन्हीं का बनवाया हुआ है । चक्रवर्ती राजा होने पर वे संन्यास जीवन धारण कर इस प्रकार के नाना धर्म कार्य करते हुए भिक्षु राजा और धर्मराजा के नाम से प्रख्यात हुए ।
चैत्रवंश का अवसान: - - हाथीगुफा के शिलालेख में महाराजा खारवेल के राजस्व के १३ वर्ष की घटनाओं का वर्णन है । उस समय उनकी श्रायु ३७ वर्ष की थी, उसके अनंतर अपने जीवन के शेष काल में उनने क्या २ कार्य किये थे, इसका कोई हाल विदित नहीं होता । चक्रवर्ती राजा होने के पश्चात् इन्होंने धर्म राजा कहला कर राजविरक्त धर्म धारण कर लिया था । अवश्य उन्होंने कुछ वर्ष तक शांति से नाना प्रकार के देश हितकार्य करके राज्य चलाया होगा और अपना शेष जीवन निर्वृतियां से उदयगिरिस्थित रानीहंसपुर गुफा में बिताया होगा । उनके प्रबल प्रताप से कलिंग राज्य का विस्तार समग्र भारत में हो गया और वह राज्य एक बलवान राज्य हो गया । उस समय कलिंग देश की सीमा उत्तर में गंगा नदी और बिहार प्रदेश, पश्चिम में बरार गोंडवानाराज्य महाराष्ट्र प्रदेश और दक्षिण में पांडय राज्य तक थीं, यही नहीं, बल्कि सीमांतवर्ती राजा लोग यद्यपि कलिंग के अंतर्गत नहीं थे तथापि महाराजा खारवेल को चक्रवर्ती राजा स्वीकार कर उनके प्रति राजोचित सम्मान प्रदर्शित करते थे । कलिंग देश के इतिहास में महाराजा खारवेल के अनंतर इस विशाल राज्य में चैत्रवंश (चटकवंश) के और कौन २ राजा हुए, वह अब तक नहीं जाना जा सका | खंडगिरि के एक शिलालेख से यह बात मालूम होती है कि महाराजा खारवेल के पश्चात् उनके उत्तराधिकारी स्वरूप 'महामेघ वाहन' उपाधिधारी विक्रराय और विक्रराय के वदुहराय नाम के दो राजा हुए, पर इसका चाहिये जितना इतिहास नहीं मिलता है ।
कलिंग की पहाड़ियों में केवल यह एक खारवेल का ही शिलालेख नहीं मिला है पर पृथक् पृथक् गुफाओं में भिन्न भिन्न शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं उनकों भी यहाँ उद्धृत कर दिये जाते हैं ।
तोसाली -- धौली पहाड़ियों तथा कोयकहाई, गुगुंभ और दया नदी के संगम के मध्य ពី एक बड़ा नगर रहा है— जिसका बाम तोसाली है और खण्डगिरि एवं भुवनेश्वर से कुछ दूर है । १ - - खण्डगिरि - खुरा जिले में एक पहाड़ी भुवनेश्वर से ३ मील उत्तर में है ।
यह पर्वत तीन विभागों में
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