Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य कक्कसरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ११२
वस्त्रों पर सोने का काम किया हुआ होता है। वे वस्त्र मूल्यवान रत्नों से विभूषित रहते हैं । वे लोग अत्यन्त सुन्दर मलमल के बने हुये फूलदार कपड़े पहनते हैं। सेवक लोग उनके पीछे पीछे छाता लगाये चलते हैं । वे सौन्दर्य का बड़ा ध्यान रखते हैं और अपने स्वरूप को संवारने में कोई उपाय उठा नहीं रखते।"
___"सचाई और सदाचारी दोनों की वे समान रूप से प्रतिष्ठा करते हैं।' 'भारतवासी मृतक के लिये कोई स्मारक नहीं बनाते, वरन् उस सत्यशीलता को जिसे मनुष्यों ने अपने जीवन में दिखलाया है तथा उन गीतों को जिनमें उनकी प्रशंशा वर्णित रहती है मरने के बाद उनके स्मारक को चिरस्थायी रखने के लिये पर्याप्त समझते हैं।"
___ "चोरी बहुत कम होती हैं । मेगस्थनीज़ कहता है कि उन लोगों ने जो सेण्ड्रोकोटश ( चन्द्रगुप्त ) के डेरे में थे, जिसके भीतर ४०००६० मनुष्य पड़े थे, देखा कि चोरी जिसकी इत्तला किसी एक दिन होती थी, और वह ऐसे लोगों के बीच जिनके पास लिपि बद्ध कानून नहीं, वरन् जो लिखने से अनभिज्ञ हैं और जिन्हें जीवन के समस्त कार्यों में स्मृति पर ही भरोसा करना पड़ता है।"
'भारतवासियों में विदेशियों तक के लिये कर्मचारी नियुक्त होते हैं, जिनका काम यह देखने का रहता है कि किसी विदेशी को हानि न पहुँचने पावे । यदि उन विदेशियों में से कोई रोगग्रस्त हो जाता है तो वे उसकी चिकित्सा के निमित्त वैद्य भेजते हैं तथा और दूसरे प्रकार से भी उसकी रक्षा करते हैं। यदि वह मर जाता है, तो उसे गाढ़ देते हैं और जो सम्पत्ति वह छोड़ जाता है उसे उसके सम्बन्धियों के हवाले कर देते हैं । न्यायाधीश लोग भी उन मामलों का जो विदेशियों से सम्बन्ध रखते हैं, बड़े ध्यानपूर्वक फैसला करते हैं और उन लोगों पर बड़ी कड़ाई करते हैं, जो उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं।"
"भूमि जोतने बाले, यद्यपि उनके पड़ोस में युद्ध हो रहा हो, तो भी किसी प्रकार के भय की आशंका से विचलित नहीं होते । दोनों पक्ष के लड़ने वाले युद्ध के समय एक दूसरे का संहार करते हैं, परंतु जो खेती में लगे हुये हैं उन्हें पूर्णतया निर्विघ्न पड़ा रहने देते हैं । इसके सिवाय न तो वे शत्रु के देश का अग्नि से सत्त्यानाश करते हैं और न उनके पेड़ काटते हैं।
डाक प्रबन्ध-"मौर्यकाल में डाक का प्रबंध कबूतरों और तेज़ चलने वाले घोड़ों द्वारा होता था।"
अत्यन्त संक्षेप में दिये हुये उक्त अवतरणों के पढ़ने से प्रत्येक मनुष्य स्वयं बिचार कर सकता है कि चंद्रगुप्त कैसा प्रतापी और विलक्षण राजा था। जिसने केवल २४ वर्ष के अल्प समय में ही अपने हाथों से स्थापित किये नवीन राज्य को ऐसी उन्नत दशा पर पहुंचा दिया कि आज से २२ सौ वर्ष पूर्व के इसके राज्य-प्रबंध का वर्णन पढ़कर हमारे पूर्वजों को मूर्ख समझने वाली आजकल की सभ्यता भिवानी जातियाँ भी आश्चर्य चकित होती हैं । इच्छा थी कि इस प्राचीन काल के प्रबन्ध सभ्यता का तुलनात्मक विवेचन वर्तमान शासन की सभ्यता, नीति आदि से किया जाय किंतु विस्तार-भय से विचार स्थगित करने पड़ते हैं।
सम्राट की वीरता-मौर्य मुकटमणि सम्राट चन्द्रगुप्त की वीरता के लिये अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसने नंद वंशीय राजाओं को पराजय कर मगध का राजतंत्र अपने हस्तगत किया था और जब वह अपने साम्राज्य के संगठन में लगा हुआ था उसी समय सेल्यूकस ने जो सिकन्दर का सेनापति था, सिकन्दर के जीते हुये भारतीय प्रदेशों को फिर से अपने अधिकार में करने के लिये,
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