Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० पू० २८८ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
पश्चिमी एशिया के कुछ भाग को छोड़ कर सारे एशिया में बौद्ध धर्म का प्रचार हो गया । सिंहासन पर आरूढ़ होते ही सम्राट् ने वौद्धधर्म की दीक्षा ली और उसके पश्चात् करीब ढाई वर्ष तक वे स्वयं भिक्षुक के वेश में रहे | उन्होंने स्थान २ पर प्रचारकों को भेज कर बौद्धधर्म का प्रचार करवाया । उन्होंने न केवल भारत में वरन् पश्चिमी देशों में भी प्रचारक भेजे । एक इतिहास लेखक लिखते हैं कि “सम्राट् अशोक संसार में पहिले शासक थे, जिन्होंने अपनी राजकीय सम्पत्ति को धर्म प्रचार में लगाया और जिसने इस धर्मप्रचार से अपने लिए, अपने उत्तराधिकारियों के लिए और अपनी जाति के लिए किसी प्रकार के लाभ की इच्छा न रक्खी | सारे संसार के इतिहास में धर्मप्रचार का यह उदाहरण द्वितीय और अनुपम है । दूसरे धर्मों में धर्मप्रचार के साथ २ देशों को जीता गया, दूसरे धर्म के मन्दिरों को गिराया गया; लूटपाट मचाई गई, जैसा कि अब भी लोगों का विश्वास है कि, अञ्जील का प्रचार यूरोपीय जातियों की सेना का अगामी होता है । कई इतिहासज्ञ अशोक की तुलना ईसाई राजा कांस्टण्टाइन से करते हैं परन्तु कांस्ट एटाइन और अशोक की प्रचार नीति में बहुत अधिक अन्तर है । न्याय यह चाहता है कि अशोक को अपने डन का एक अकेला ऐसा शासक समझा जाय, जिसके ढङ्ग का आज तक मनुष्य जाति ने उत्पन्न नहीं किया | हाँ कान्स्टण्टाइन के समय में ईसाई धर्म कुछ बहुत फैल चुका था ।”
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सम्राट् अशोक ने मिश्र, शाम, सायरीन, मकदूनिया, लंका और दक्षिण भारत के स्वतंत्र राष्ट्रों में भी अपने धर्मप्रचारक भेजे थे । इसके अतिरिक्त तिब्बत, हिमालय के प्रान्त, हिंदूकुश के प्रांत, काबुल उपत्यका गान्धार और यवन देशों में भी उन्होंने बौद्धधर्म का प्रचार किया । प्रसिद्ध इतिहास लेखक अलबेरूनी लिखता है कि "मुसलमान धर्म के प्रारम्भ के पूर्व सारे मध्य एशिया में बौद्धधर्म फैला हुआ था । ईरान, ईराक, रूम, अजम, शाम आदि देशों में मी बौद्धधर्म का गहरा असर पड़ रहा था ।" लङ्का मै बौद्धधर्म का प्रचार करने के लिये स्वयं अशोक का भाई महेन्द्र गया था और उसके साथ अशोक की पुत्री संघमित्रा भी गई थी उसने वहां के तत्कालीन राजा को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी और सारे लङ्का द्वीप में बौद्धधर्म का प्रचार किया । तब से आज तक लङ्का द्वीप बौद्धधर्म का उपासक है । महेन्द्र ने अपना सारा जीवन लङ्का मे ं धर्म प्रचार करते हुए व्यतीत किया। आज भी लङ्का में बौद्ध लोग महेन्द्र की पूजा करते हैं | उसके स्मारक स्वरूप वहां पर एक स्तूप बनाया गया था। इस समय भी वह स्तूप लंका में दर्शनीय गिना जाता है। हाल ही में पुरातत्त्व वेत्ताओं के परिश्रम से लंका में अनुराधपुर नामक नगर के कुछ खण्डहर मिले हैं। यह अनुराधपुर संसार में बौद्धधर्म का एक उज्वल स्मारक है । एक अंग्रेज लेखक ने इस नगर की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि "इसके सन्मुख रोम और यूनान तुच्छ जान पड़ते हैं । " अस्तु ! सम्राट अशोक ने पेगू — जिसे उस काल में स्वर्णभूमि कहते थे - वहां भी बौद्धधर्म का प्रचार करवाया था । इसके अतिरिक्त चोल, पाण्ड्य, करेलपु सतियपुत्र इन चार स्वतंत्र दक्षिण प्रांतों में भी उसने बौद्ध धर्म के अनेक विहार और मंदिर बनवाये थे । मतलब यह है कि, बौद्धधर्म का प्रचार करने के लिए सम्राट अशोक ने कोई भी बात उठा न रक्खी। यदि सम्राट् अशोक, और महाराज कनिष्क न होते तो आज महात्मा बुद्ध के बावन करोड़ अनुयायी दिखलाई पड़ते या नहीं, यह कौन कह सकता है ? उस समय बौद्धधर्म का प्रभाव प्रायः सारी ज्ञात दुनिया पर पड़ रहा था । यूनानी तत्त्वज्ञान और ईसाई धर्म पर भी बौद्धधर्म का बहुत प्रभाव पड़ा ।
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