Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य ककारि का जीवन ]
| ओसवाल सं० ११२
शिशुनाग महान् शक्तिशाली एवं प्रतापी राजा हुआ है । जिसकी सन्तान शिशुनाग वंश के नाम से प्रसिद्ध हुई । वायुपुराण में लिखा है कि शिशुनागवंश के १० गजाओं ने ३३३ वर्ष तक राज किया है। जैन शास्त्रों में भगवान पार्श्वनाथ का जन्म ई० सं० पूर्व ८७७ वर्ष में हुआ लिखा है और ई० सं० पूर्व ८४७ वर्ष में पार्श्वनाथ ने संसार का त्याग कर दीक्षा ली तथा ई० सं० पूर्व ७७७ वर्ष में भगवान पार्श्वनाथ की मोक्ष हुई । उनके बाद १७८ वर्ष में भगवान महावीर का जन्म हुआ। भगवान महावीर ३० वर्ष गृहवास में रहने के बाद दीक्षा ली और ४२ वर्ष दीक्षा पाल कर अपना सर्वायु ७२ वर्ष पूर्ण कर ई० सं० पू० ५२७ घर्ष में मोक्ष गये । जिस दिन भगवान महावीर की मोक्ष हुई उसी दिन उज्जैन नगरी की गद्दी पर राजा पालक का राज अभिषेक हुआ और उसने ६० वर्ष तक राज किया । इधर उज्जैन में पालक राजा के राज का ६० वा वर्ष खत्म होता है उधर मगद की गद्दी पर नंदवंशी राजा नंदवर्धन का राज अभिषेक हुमा। इस हिसाब से भगवान महावीर मोक्ष होने के बाद मगद के सिंहासन पर ६० वर्ष शिशुनागवंश के राजा का राज रहा ! वायु पुराण के लेखानुसार शिशनाग वंश का राजकाल ३३३ वर्ष का माना जाय तो ई० सं० पूर्व ८०० वर्षे शिशुनाग वंश के गज का प्रारम्भ होता है और ई० सं० पूर्व ४६७ वें वर्ष अर्थात् भगवान महावीर की मोक्ष के बाद ६ वर्षे शिशुनाग वंश के राज का अन्त हुआ माना जा सकता है। परन्तु श्रीमान त्रिभुवनदास लेहरचंदशाह ने अपना 'प्राचीन भारत वर्ष' नामक ऐतिहासिक ग्रंथ में शिशुनाग वंश के राजाओं की वंशावली में शिशुनाग वंश की स्थापना का समय ई० सं० पूर्व ८०५ वर्ष का बतलाया है। सब उपरोक्त हिसाब से ई० सं पूर्व ८०० वर्ष का आता है । पर वह दोनों प्रकार के समय अनुमान मात्र ही है अतः इस पर इतना जोर नहीं दिया जाता है । पर खास विचारणीय विषय तो यह है कि मैंने जैन शास्त्रों के आधार पर भगवान मह वीर के निर्वाण के बाद शिशुनाग वंश का राज ६० वर्ष रहना लिखा है तब शाह ने ५४ वर्ष लिखा है क्योंकि कोणिक ३० वर्ष (कोणिक का राज जो ३२ वर्ष रहा पर २ वर्ष महावीर की मौजूदगी में बाद ३० वर्ष ही रहा) १६ वर्ष उदाई और ८ वर्ष अनरुद्ध एवं मुदा एवं ३०-१६-८ कुल ५४ वर्ष माना है इससे ६ वर्ष का अन्तर पड़ जाता है और यह अन्तर दूसरा नहों पर राज कौणिक के राजकाल का है। कारण शाह ने कोणि क का राज ३२ वर्ष का माना है और कौणिक के राजगद्दी पर बैठने के वाद २ वर्ष में भगवान महावीर का निर्वाण होना बतलाया है। यह एक विधारणीय प्रश्न पन गया है। श्रीमान शाह लिखते हैं कि राजा कौणिक मगद के सिंहासन पर भारुड़ होने के ४ वर्ष के बाद अपनी राजधानी चम्पा नगरी में ले गया जब भगवान महावीर की मोक्ष दूसरे वर्ष ही हो गई इससे राजा कौणिक चम्पा में राजधानी कायम करने के बाद भगवान महावीर को देखा भी नहीं होंगे। तब जैन ग्रंथों में ऐसे उल्लेख मिलते हैं कि भगवान महावीर चम्पानगरी पधारे उस समय वहां पर राजा कौणिक गज्य करता था इतना ही क्यों पर राजा कूणिक ने भगवान महावीर का बड़ा ही शानदार स्वागत किया है इनके अलावा भगवान महावीर जब चम्पा नगरी पधारे उस समय श्रोणिक गजा की काली आदि दस रानियों ने भगवान महावीर के पास दीक्षा ली थी इत्यादि । प्रमाणों से स्पष्ट सिद्ध होता है कि राजा कौणि Eअपनी राजधानी चम्पा में ले जाने के बाद भी भगवान महावीर विद्यमान थे। और कई बार चम्पा नगरी में पधारे भी थे इसस कौणिक का राजकाल भगवान महावीर की मौजूदगी में दो वर्ष नहीं पर कुछ अधिक मानना होगा तथा भगवान महावीर के निर्वाण के बाद में कौणिक उदाई-अनुरुद्ध के ६० वर्ष मानना होगा
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