Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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ओसवाल जाति की ऐतिहासिकता]
[वि० पू० ४०० वर्ष
अपना बड़े से बड़ा अस्त्र बना कर काम ले रहे हैं जिसके सामने हिंसावादियों को अपना सिर झुकाना ही पड़ा है। इस विषय में अब अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है कि सच्ची एवं शुद्ध मन से अहिंसा का पालन करने वाला सदैव विजयी होता है। ___सच्ची अहिंसा है वहां मान, मद, क्रोध, लोभ, विश्वासघात, धोखेबाजी श्रादि अनुचित कार्य स्वप्न में भी नहीं होते हैं । जब कि पर आत्मा को थोड़ा ही कष्ट पहुँचाना हिंसा समझी जाती है तो पूर्वोक्त कार्य तो हिंसापूर्ण होते हैं।
हां कितनेक भाई जैन कहलाते हुए भी अहिंसा के स्वरूप को ठीक तौर पर नहीं समझ कर दया का उल्टा दुरुपयोग करते हैं कि वे क्षुद्र प्राणियों की दया करते हुए पांचेन्द्रिय जैसे जीवों तथा अपने भाइयों की ओर दुर्लक्ष रखते हैं । वे अहिंसक कहलाते हुए क्रोध, मान, माया, लोभ, विश्वासघात, धोखेबाजी, झूठ बोलना आदि कुकृत्यों से नहीं बचते । यह तो एक अहिंसा का केवल विकृत ढांचा ही है और इसको अहिंसा नहीं पर वस्तुतः हिंसा ही कही जाती है। और जो लोग आज जैनियों की दया के लिये आक्षेप करते हैं वे इसी विकृत अहिंसा के लिये ही करते हैं न कि सच्ची अहिंसा के लिये।
ओसवाल जाति के अठारह गोत्र प्रः-कई लोग यह भी कहते हैं कि जैन जातियों में सब से पहले तातेड़ी, बाफनार, कर्णावट ३, वलहा, मोरक्ष५, कुलहट ६, वीरहट, संचेती८, श्रेष्टि, आदित्यनाग १०, भूरि११, भाद्रो१२, कुमट १३, चिंचट।४, श्रीश्रीमाल१५, कनौजिया१६, डिडु७, व लधुश्रेष्टि1८ यह १८ गौत्र रत्नप्रभसूरि ने ही स्थापन किये थे ?
उ०-आचार्य रत्नप्रभसूरि काय अलग २ गौत्र स्थापन करने का नहीं था, पर अलग २ जातियों में विभक्त प्रजा को एक सूत्र में संगठित करने का था और उन्होंने ऐसा ही किया था बाद में जैसे २ समय निकलता गया तथा उसमें एक एक कारण पाकर गौत्र एवं जातियां बनती गई, जैसे:
१-तप्तभट्ट नामक एक नामांकित पुरुष की सन्तान तप्तभट्ट गौत्र के नाम से कहलाई। बस, आगे चल कर उसका गौत्र ही तप्तभट्ट कहलाने लगा और उसका अपभ्रंश नाम तातेड़ हो गया। - २-आदित्यनाग नामक एक उदार पुरुष ने शत्रुजय का संघ निकाला जिसमें करोड़ द्रव्य व्यय किया जिसकी सन्तान प्रादित्यनाग गौत्र से मशहूर हुई और आगे चल कर चोरड़िया पारख गुलेच्छा वगैरह कई नामों से जातियां बन गई।
३- बापनाग नामक वीर पुरुष की सन्तान बापनाग गौत्र से कहलाने लगी, इसका अपभ्रंश बाफना बहुकूनादि हो गया और जांघड़ा, नाहटा, बैतालादि कई जातियें बन गई।
४-श्रीमाल से आये हुये समूह का नाम श्रीमाल और राज की ओर से उनको एक श्री मिलने से वे श्रीश्रीमाल कहलाये।
५.-भाद्र नाम के प्रसिद्ध पुरुष की सन्तान भाद्रगौत्र के नामसे विख्यात हुई। आगे चल कर समुद्री व्यापार के कारण इनको समदरिया भी कहने लगे। इसमें एक भांडाशाह नामक प्रतापी पुरुष होने से उनकी सन्तान भाण्डावतों के नाम से कही जाने लगी।
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