Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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कि राजाओं ना नाम,
यक्ष
यक्षणि
मोक्ष
मोक्ष तिथि
मोक्ष तप
मोक्षासम
८"
गोमुख
पनामन कायोत्सर्ग
तुबंर
त्रिपृष्ठ
मरत चक्रवर्ति सागर , महायक्ष मृगसेन राजा त्रिमुख मित्र वीर्य यक्षेश सत्य वीर्य भजितसेन , कुसुम दानवीर्य मातंग मघवा चक्रवर्ति , विजय युद्धवीर्य राजा ,, | अजित सीमन्धर , ब्रह्मा त्रिपृष्ठ वासुदेव | ईश्वर
कुमार संभु
षट् मुख पुरुषोमत्तम , पाताल पुरुषसिंह ,
किन्नर कोणालक राजा गरुंड कुबेर नृपति गर्व सुभूम चक्री यक्षेन्द्र भजितराजा कुवर विजयमहनृप वरुण हरिपेण चक्री भुकूटी श्रीकृष्ण वासुदेव गोमेघ प्रसेनजित राजा | पार्श्व श्रेणिक राजा मातंग
,
चकेश्वरी अष्टापद महावद १३ छ उपवास अजित बाला | समेतशिखर चैत्र शुद ५ | एक मास दुरितारी कालिका
वैशा, शुद महाकाली
चैत्र , ९ अच्युता
मागसर वद ११ शांता
फाग बद. ज्वाला
भाद बद . सुतारिका अशोका
वैशा, वद २ मानवी
श्रावण , प्रचडा चंपा पूरी असा शुद १४ विदिता समेत सि , वद. अंकुशा
चैत्र शुद ५ कंदर्पा
जेठ शु०५ निर्वाणी
,, वदी १३
वैशा वद. धरणी
मागसर शुद धरण प्रिया
फाग , २ नरदत्ता
जेठ वदी ९ गंधारी
वैशा,.. अबिंका गिरनार असा शुद पद्मावती समेत शि. श्राव शुद सिद्धायिका पावापुरी काती वद १५ | छठ तप
बला
पद्मासन कायोत्सर्ग पमासम
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१२-तीर्थक्करदेव १८ दोष रहित होते हैं जैसे-दान्तन्तराय, लाभ०,भ ग०, उपभोग०, वीर्य०, मिध्यात्व, अज्ञान, अव्रत, काम, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगप्सा, राग, द्वेष, पौर निद्रा एवं अठाहरा दोष । अथवा हिंसा, झूठ, चोरी, क्रीडा, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगप्सा, क्रोध, मान, माया, लोभ, मत्सर, अज्ञान, निद्रा, और प्रेम एवं अठारह दोषों से रहित हो वेही सच्चे देव कहलाते है।
१३-तीर्थङ्करदेव के अतिशय-विशेष गुण, जन्म समय ४ धनधाती कर्मों का क्षय होने से ११ देवकत १९ एवं सब ३४ अतिशय होते हैं। जन्म समय १-शरीर अनंत गुण, रूप, संयुक्त सुगन्धी, रोग, मक परसेवा (पशीना) रहित २-रुद्रर मांस गाय के दूध जैसा उज्वल और दुर्गन्ध रहित है । ३-आहार
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