Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य केशीश्रमण का जीवन
[वि० पू० ५५४ वर्ष
७-डाक्टर भण्डारकर ने भी महात्माबुद्ध का जैन मुनि होना स्वीकार किया है ( देखो जैन हितैषी भाग ७ वां अंक १२ पृ०१)
[ परिणाम है। ८-बुद्ध ने अपने धर्म में जो अहिंसा को प्रधान स्थान दिया है यह भी जैन धर्म के संसर्ग का ही
९ -डाक्टर फहरार ने भी कहा है कि महात्मा बुद्ध का घराना जैनधर्मोपासक था। शायद् बुद्ध ने पहिले जैन धर्म की दीक्षा ली हो तो भी असंभव नहीं है।
१. श्रीमान ध्रुव ने अपने भाषण में कहा है कि महात्मा बुद्ध का जन्म जैन घराने में हुआ था, यही कारण है कि आपने अहिंसा पर खूब जोर दिया जैसे महावीर ने दिया था।
११- बुद्ध ने आत्मा को क्षणिक स्वभाव माना है जो जैन सिद्धान्त में 'द्रव्य पर्याय' की व्याख्या की है द्रव्य नित्य और पर्याय अनित्य अर्थात् पर्याय समय २ पर बदलते हैं । बुद्ध ने द्रव्य को पर्याय समम आत्मा 'क्षणिक' प्रतिक्षण नाश होने वाला माना है, इत्यादि प्रमाणों से सिद्ध होता है कि बुद्ध का घराना जैन था और बुद्ध ने प्रारम्भ में जैनदीक्षा स्वीकार की थी।
उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट पाया जाता है कि महात्मा बुद्ध ने जैनश्रमणों के पास दीक्षा अवश्य ली थी। बुद्ध का यज्ञ-हिंसा के प्रति विरोध और अहिंसा के विषय में उपदेश जैनों से मिलता जुलता होने से कई अनभिज्ञ लोगों ने जैनों को ही बौद्ध लिख दिया एवं जैनधर्म को बौद्धों की एक शाखा बतलाने की भी धृष्टता कर डाली। पर जब जैनों ने अपनी स्वतंत्रता एवं प्राचीनता के अकाट्य प्रमाण विद्वानों के सामने रक्खे तब जाकर उन्होंने अपनी भूल समझ कर यह स्वीकार किया कि नहीं, बौद्धधर्म अलग है और जैन धर्म अलग है ! बौद्धधर्म में यह शक्ति संगठन नहीं था कि वह जैनधर्म की बराबरी कर सके । कारण बौद्धधर्म अहिंसा की बुनियाद पर पैदा हुआ था पर बाद में वे मांसभक्षी बन गये थे और आज भी उनमें मांसभक्षण का प्रचुरता से प्रचार है तब जैनधर्म शुरू से आज तक अमांसभोजी है और भविष्य में रहेगा। अतः जैनधर्म और बौद्धधर्म पृथक पृथक धर्म हैं।
जैन धर्म की नींव आस्तिवाद पर और बौद्ध धर्म की नींव क्षणिक वाद पर है। जैनधर्म का त्याग वैराग्य और तप संयम उत्कृष्ट होने से संसारलुब्ध एवं इन्द्रियों के वशीभूत प्राणियों से पालना दुस्साध्य है । तब बौद्धधर्म के नियम सादा और सरल थे जिसमें ऐसी किसी खास वस्तु का निषेध एवं कष्ट नहीं था जिससे हरेक व्यक्ति उसका पालन कर सकता था।
बुद्ध ने अपना नया मत निकाल कर अपना मत चलाया था पर फिर भी महावीर के स्याद्वादसिद्धान्त को वह ठीक ही समझता था, जिसका प्रमाण खास बुद्ध के निर्माण किये शास्त्रों में भी मिलता है।
बौद्धों के समस्त धार्मिक ग्रन्थ तीन भागों में विभक्त है जो "त्रिपिटक' कहलाते हैं, इनके नाम क्रमशः विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्मपिटक हैं । प्रथम पिटक में बौद्धमुनियों के प्राचार और नियमों का दूसरे में महात्मा बुद्ध के निज उपदेशों का और तीसरे में विशेषरूप से बौद्ध सिद्धान्त और दर्शन का वर्णन है । सुत्तपिटक के ५ निकाय अर्थात् अंग हैं जिसमें से दूसरे का नाम मममीमनिकाय है इसमें अनेक स्थानों पर महात्मा बुद्ध का निर्मन्थ मुनियों से मिलने और उनके सिद्धान्तों आदि के विषय में बातचीत करने का उल्लेख पाया है । इन उल्लेखों से सिद्ध होता है कि बुद्ध को भगवान महावीर की सर्वज्ञता का
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