Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० पू० ४०० वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
श्राचार्य स्वयंप्रभसूरि के जीवन में आप पढ़ चुके हो कि सूरिजी ने सबसे पहिले श्रीमाल के राजा, जयसैनादि ९०००० घरों के क्षत्रियों को मांस मदिरा छुड़वा कर जैन बनाया था। राजा जयसैन को दो रानियें थीं। बड़ी का पुत्र भीमसैन और छोटी का पुत्र चन्द्रसैन था। जिसमें चन्द्रसैन तो अपने पिता का अनुकरण कर जैनधर्म की उपासना एवं प्रचार करता था पर भीमसैन की माता शिवधर्मोपासिका होने से भीमसैन शिवधर्मोपासक ही रहा । यही कारण था कि दोनों बन्धुओं में धर्म विषय सम्बन्धी द्वंद्वता चलती थी। पर स्वयं राजा जयसैन के जैनधर्मोपासक होने के कारण भीमसैन की इतनी नहीं चलती थी। फिर भी राजा जयसैन इन बातों को सुनता था तब उसको बड़ा भारी दुःख हुआ करता था और यह भी विचार आया करता था कि यदि भीमसैन को राजसत्ता दे दी गई तो यह धर्मान्धता के कारण जैनधर्मोपासकों को सुख से श्वास नहीं लेने देगा इत्यादि ।
राजा जयसैन ने अपनी अन्तिमावस्था में अपने मनोगत भाव चन्द्रसैन को कहे जिसके उत्तर में चन्द्रसैन ने कहा पूज्य पिताजी आप इस बात का कुछ भी विचार न करें। यह तो जैसे ज्ञानियों ने भाव देखा है वैसे ही बनेगा। आप तो अन्तिम समय चित्त में समाधि रक्खें। जैनधर्म का यही सार है कि समाधि मरण से आराधिक हो अपना कल्याण करले इत्यादि । . फिर भी राजा जयसैन के दिल में जैनधर्म की इतनी लग्न थी कि उन्होंने उमराव मुत्सद्दी आदि अग्रेसरों को बुला कर कहा कि मेरा तो अब अन्तिम समय है और मैं आप लोगों को यह कहे जाता हूँ कि मेरे बाद मेरा पदाधिकार चन्द्रसैन को देना । कारण, यह राजतंत्र चलाने में सर्व प्रकार से योग्य है इत्यादि कह कर राजा जयसैन ने तो अल्प समय में आराधना पूर्वक समाधि के साथ स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर दिया।
बाद राजपद के लिये तत्काल ही दो पार्टियें बन गई एक पार्टी का कहना था कि राजा जयसैन की अन्तिमाज्ञानुसार राजपद चन्द्रसैन को दिया जाय । तब दूसरी पार्टी का कहना था कि राजा चाहे धर्मान्धता के कारण चन्द्रसैन को राज देना कह भी गये हों पर यह नीतिविरुद्ध कार्य कैसे किया जाय ? कारण, भीमसैन राजा का बड़ा पुत्र होने से राज्य का अधिकारी वही है। यह मतभेद केवल राजपद का ही नहीं था पर इसमें अधिक पक्षपात धर्म का ही था और इस पक्षान्धता ने इतना जोर पकड़ा कि जिसका अन्तिम निर्णय करना तलवार की धारा पर आ पड़ा।
चन्द्रसैन जैसा धर्मज्ञ था वैसा ज्ञानी भी था। उसने सोचा कि यह जीव अनंत वार राजा हुआ है इससे श्रामिक कल्याण नहीं है । केवल एक नाशवान राज के कारण हजारों लाखों मनुष्यों का स्वाहा हो जायगा । अतः उसने अपनी पार्टी वालों को समझा बुझाकर शान्त किया। बस फिर तो था ही क्या ? शिवोपासकों का पानी नौ गज चढ़ गया और भीमसैन को राजतिलक कर राजा बना ही दिया।
___ भीमसैन ने राजपद पर आते ही जैनों पर जुल्म गुजारना शुरू कर दिया मानो कि जैनों से चिर. काल का बदला ही लेना हो १ इस हालत में चन्द्रसैन की अध्यक्षता में जैनो की एक सभा हुई और उसमें नगर त्याग का निश्चय कर लिया । राजा चद्रसैन ने श्रीमालसे आबूको ओर एक नया नगर पसानेकी गरज से प्रस्थान किया तो एक अच्छा उन्नत स्थान आपको मिल गया बस वहाँ ही उसने नीव डाल कर नगर
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