Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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ओसवाल जाति की ऐतिहासिकता ]
[वि० पू० ४०० वर्ष
समाधान- यह कवित्त स्वयं अपने को अर्वाचीन साबित करता है तथा किसी भी प्राचीन ग्रन्थ, पावलियों एवं वंशावलियों में यह कवित्त दृष्टिगोचर नहीं होता । इसके अतिरिक्त शंकाकर्ताओं को जरा यह भी विचारना चाहिये था कि यदि श्रोसवालोत्पत्ति दशवीं शताब्दी में भी मानली जाय तो भी यह कवि तो समय और भाषा की दृष्टि से अर्वाचीन ही ठहरता है। इसी प्रकार इस कवित्त में उल्लिखित राजपूतों की जातियें वि० की पांचवी शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी में पैदा हुई हैं। तत्र तो इस कवित्त के आधार पर सवालोत्पत्ति का समय भी वि० की १७ शताब्दी का ही समझना चाहिये ।
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इस कवित्त के अनुसार क्या आपकी अन्तरात्मा इस बात को मंजूर करने को तैयार है कि स वालों की उत्पति वि० की १७ वीं शताब्दी में हुई होगी ? नहीं, कदापि नहीं ।
समय न तो इन राजपूत जातियों सूरिजी का उद्देश्य तो भिन्न २
जरा चश्मा उतार कर देखना चाहिये कि आचार्य रत्नप्रभसूरि के का अस्तित्व ही था और न उन्होंने अठारह गोत्र स्थापित ही किये थे । जातियों के टूटे हुये शक्ति तंतुओं को संगठित करने का था और वास्तव में उन्होंने ऐसा ही किया था । पश्चात् भिन्न २ कारण पाकर गोत्रों का निर्माण हुआ है जैसे कि वीरप्रभु से ३७३ वर्षे उपकेशपुर में महावीर राजपूतों की १८ जातियां
श्रसवालों के १८ गोत्र |
तप्तभट्ट - तातेड़
बाप्पनाग वापना
१- परमार
१२- शिशोदा ३ - राठौर
- बासंचा
४
५- वालेचा
६ – दइयाँ
७- भाटी
८- सोनीगरा
९- कच्छावा
१० - गोड़
११ - जादव
१२- माला
१३ -- जिन्द
इस कवित्त में राजपूतों
की कुल १३ जातियां
बताई हैं परन्तु ओसवालों
के गोत्र १८ हैं । इसके लिये शंकाकर्ता उपाय सोचेंगे।
क्या
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समय
विक्रम की नवी शताब्दी
वि० ९४वी शताब्दी
वि० ६ठी शताब्दी
प्रसिद्ध
35
वि० की १३वीं शताब्दी
वि० की ४थी शताब्दी वि० की १३वीं शताब्दी
वि० की ८वीं शताब्दी
वि० की १२वीं शताब्दी
प्राचीन
वि० १०वी शताब्दी वि० [श्रप्रसिद्ध
कर्णाट-करणावट बलहा - राँका बाँका मोरष - पोकरण
कुलइट
वीरहट
श्रीश्रीमाल -
श्रेष्ठि-वैद्य मेहता सुचंती - संचेती
श्रादित्यनाग - चोरड़िया,, भूरि- भटेवरा
भाद्र - समदड़िया
चींचट - देसरडा
कुम्मट
कनौजिया - डीड – कोचर मेहता लघुश्रेष्ट — सिद्ध
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प्रसिद्ध
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समय
का समय वि० पू० ९७ वर्ष का है। इनको राजपूतों की जातियों से मिलाइये । का समय वि० पू० ४०० वर्ष का है तथा इन गोत्रों के नाम का पता मिलने महान संघ के संस्थापक आचार्य रत्नप्रभसूरि होने से इन १८ गोत्रों
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