Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
View full book text
________________
वि० पू० ४७० वर्ष ]
[भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास .
पुत्र के ऐसे विनय व्यवहार से पिता-माता बहुत उल्लासपूर्वक विवाह के लिये तैयारी करने लगे । सारी सामग्री बात की बात में एकत्रित हुई । कन्याओं के माता पिता ने विवाह की तैयारी कराने के प्रथम अपनी
आठों बालिकाओं को बुला कर पूछा कि जिस कुँवर के साथ तुम्हारा विवाह होने वाला है वह संसार से उदासीन है । वह एक न एक दिन संसार के बन्धनों को तोड़, राज्य सदृश्य लक्ष्मी और कामिनी को तिलाजलि दे दीक्षा अवश्य ग्रहण करेगा ही। तथापि उसका पिता विवाह करने पर उतारू है। वह बरजोरी अपने पुत्र को बाध्य कर विवाह के लिए तैयार करता है । तुम्हारी अनुमति इस विषय में क्या है ? निस्संकोचपूर्वक कहो, मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी इच्छाओं के विरुद्ध मैं कुछ करूं ।
पुत्रियों ने प्रत्युत्तर दिया कि पिताजी ! निस्संदेह हम अपना जीवन उस कुंवर पर समर्पित कर चुकी हैं । उसने हमारे हृदय में घर करलिया है अतएव दूसरे पति के लिए हमारे मन में स्थान पाना असम्भव है। आप निस्संकोच हमारा पाणि-ग्रहण उसके साथ करवा दीजिए । पिता ने पुत्रियों की बात ही मानना उचित समझ कर विवाह की खूब तैयारियों की । निर्विघ्नतया विवाह समाप्त हुआ । पिता ने अपनी पुत्रियों को दहेज में इतना धन दिया कि सारे लोग उसकी भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे । वह धन ९९ वें करोड़ सुनैया था। विवाह के पश्चात् जम्बुकुमार रात्रि को महल में पधारे तो आठों स्त्रियाँ सुन्दर वेश भूषण पहिन कर वचन चतुराई से अपनी ओर आकर्षित करती हुई जम्बुकुमार के पास आकर हावभाव दिखा कर अपने वश में करने का प्रयत्न करने लगी । पर भला उदासीन कुंवर पर इन बातों का क्या प्रभाव पड़ने का था।
उधर प्रभव नाम का चोरों का सरदार अपने साथ ५०० चोरों को लेकर उस नगर में आया। उसने विचार किया कि जम्बुकुमार को ९९ करोड़ सुनैये दहेज में मिले हैं तो उन्हीं को जाकर किसी प्रकार चुरा कर लाना चाहिए । इसी हेतु से वह जम्बुकुमार के महलों में उसी दिन चतुराई से गुप्त रूप से पहुँच गया । जाकर क्या देखता है कि धन की ओर किसी का भी ध्यान नहीं है । जम्बुकुंवर अपनी नवविवाहित स्त्रियों को समझाने में तन्मय हैं । और वह सुरसुन्दरियां अपने पति को संसार में रखने के लिए अनेक उदाहरण सुना रहीं थीं। चोरों ने उनकी बातें सुनी । कुंवर अपनी स्त्रियों को कह रहा था कि जिस सुख के लिए तुम मुझे लुभाने का प्रयत्न कर रही हो वह सुख वास्तव में तो दुःख है । यदि तुम्हें सच्चे सुख को प्राप्त करने की इच्छा है तो मेरा अनुकरण करो । स्त्रियों ने समझाए जाने पर कुंवर की बात मान ली और इस बात की सम्मति प्रकट की कि हम भी आठों आप के साथ ही साथ दीक्षा ग्रहण करेंगी । चोर विस्मित हुए। उनकी समझ में नहीं आया कि यह कुँवर इस धन की ओर, जिसके लिए कि हम दिन-रात हाय-हाय करते हुए अपने प्राण तक संकट में डालते हैं, इन स्त्रियों की ओर, जिनके कि वशीभूत होकर हम अनेकों निर्लज्ज काम कर डालते हैं, दृष्टि तक नहीं डालता । सचमुच यह कुँवर कदाचित पागल ही होगा। चोरों ने चाहा कि अपन तो अब इनका सम्वाद सुन चुके हैं । यहां से रफ्फूचक्कर होना चाहिये । पर देखिये शासन देव ने क्या रचना रची । ज्योंही चोर सुनैयों की गठरिया सर पर धर कर टरकने लगे कि उनके पैर रुक गए । वे पत्थर मूर्ति की तरह फर्श पर अचल हो गये । चोरों के होश स्नता हो गए । वे प्रथम तो खूब डरे पर अन्त में और कोई उपाय न देख कर गिड़गिड़ा कर कातर स्वर से कुँवर को सम्बोधन कर बोले कि आप को धन्य है।
Jain Educa
contemnational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org