Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० पू० ५५४ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
हे गौतम ! यह उत्तर आपने ठीक युक्ति द्वारा प्रकाश किया परन्तु एक और भी प्रश्न मुझे पूछना है। हे क्षमागुणालंकृत भगवान फरमाइये ?
(९) प्रश्न-हे गोतम ! इस घोर संसार के अन्दर महापाणी के वेग के अन्दर बहुत से पामर प्राणी मृत्यु को प्राप्त होते हैं तो इनके शरणदायक किसी द्वीप को श्राप जानते हो?
उ०-हे भगवान ! इनको पाणी के महावेग से बचाने के लिये एक बड़ा भारी विस्तारवाला और सौम्य प्रकृति सुंदराकार महाद्वीप है। वहां पर पाणी का वेग कभी नहीं आता है, उसी द्वीप का श्रावलम्बन करते हुए जीवों को पाणी का वेग सम्बन्धी किसी प्रकार का भय नहीं होता है ?
तर्क-हे गौतम ! वह कौनसा द्वीप और कौनसा पाणी है ?
समा०-हे भगवान ! इस रौद्र संसारार्णव में जन्म जरामृत्यु रोग शोक भय आदि पाणी का महावेग है इसमें अनेक प्राणी शारीरिक मानसिक दुःख का अनुभव कर रहे हैं। जिसमें एक सुंदर विशाल अनेक गुणागार धर्म नाम का द्वीप है । अगर पाणी के वेग के दुख को देखते हुये भी इस धर्म द्वीप का अवलम्बन कर ले तो इन दुःखो से बच सक्ता है । अर्थात इस घोर संसार के अन्दर जन्म मृत्यु श्रादि दुखी प्राणियों को सुखी बनने के लिये एक धर्म ही का अवलम्बन है और धर्म ही से अक्षय सुख की प्राप्ति होती है।
__ हे गौतम ! श्रापकी प्रज्ञा बहुत अच्छी है । यह उत्तर आपने ठीक दिया परन्तु एक प्रश्न मुझे और भी पूछना है ?
हे कपासिंधु ! आप अवश्य कृपा करावें ।
(१०) प्रश्न-हे गौतम ! महासमुद्र के अन्दर पाणी का वेग (चक्र) बड़े ही जोर शोर से चलता है उसके अन्दर बहुत से प्राणी डूब कर मृत्यु-शरण हो जाते हैं और उसी समुद्र के अन्दर निवास करते हुये, आप नौकारूढ़ हो कैसे समुद्र को तर रहे हो ?
उ०-हे भगवान ! उस समुद्र के अन्दर नाव दो प्रकार की है (१) छिद्र सहित कि जिन्हों के अंदर बैठने से लोग समुद्र में डूब मरते हैं ( २ ) छिद्र-रहित कि जिन्हों के अन्दर बैठ के, आनन्द के साथ समुद्र को तर सकते हैं।
तर्क-हे गौतम ! कौनसा समुद्र और कौनसी श्राप के नाव है ?
समा०-हे भगवान ! संसाररूपी महासमुद्र है। जिसमें औदारिक शरीररूपी नाव है परन्तु जिस नाष में श्राश्रवद्वार रूपी छिद्र है अर्थात् जिस जीव ने आश्रवद्वार सहित शरीर धारण किया है वह तो संसार समुद्र में डूब जाता है और जिसने श्राश्रवद्वार रोक कर शरीर रूपी नौकारूढ हुवा है। वह संसार समुद्र से तर के पार हो जाता है । हे भगवान ! मैं छेदरहित नौकारूढ होता हुआ ही समुद्र तर रहा हूँ ।
हे गौतम ! यह उत्तर तो आपने ठीक युक्तिपूर्ण दिया परन्तु मुझे एक प्रश्न और भी पूछना है ? हे स्वामिन् ! श्राप कृपा कर फरमावें।
(११) प्र०-हे गौतम ! इस भयंकर संसार के अन्दर घोरोनघोर अन्धकार फैल रहा है जिसके अन्दर बहुत से प्राणी इधर के उधर धक्के खाते भ्रमण कर रहे हैं, उन्हों को रास्ता तक भी नहीं मिलता है। तो हे गौतम ! इस अन्धकार में उद्योत कौन करेगा ? क्या यह बात आप जानते हो ? ।
उ०-हे भगवान ! इस घोर अन्धकार के अन्दर उद्योत करने वाला एक सूर्य है, उन्हीं सूर्य के
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