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१६] भगवान पार्श्वनाथ । तपश्चरणके कारण शरीर कश हो चुका है; पर आत्मतेनका प्रभाव उनके सुन्दर मुखपर छागया है कि मानो सूर्य ही उग रहा है । वन हस्ती भी इस दिव्य पुरुषके सामने अवाक् होरहा । अपने दुष्कर्मको बिल्कुल ही भूल गया ! आत्मतेजका प्रभाव ही ऐसा होता है ।
___आजकल आत्मवादको प्रगति प्राय शिथिल होगई है। - इसी कारण लोगोको आत्माकी अनन्तशक्तिमे बहुत कम विश्वास
है । भौतिकवादके झिलमिले प्रकाशने ही उनकी आखें चुधिया दीं है, परन्तु अब जमाना पलटता जा रहा है। लोग फिरसे आत्मवाढके महत्वको समझते जा रहे है और आत्माकी अनन्तशक्तिमे विश्वास करने लगे है। सचमुच आत्माकी अमोघ अनन्तशक्तिके समक्ष कोई भी कार्य कठिन नहीं है। फिर भला, अगर वनहाथी वजघोष मुनिके अलौकिक आत्मरूपके सामने नतमस्तक होजावे तो कौनसे आश्चर्यकी बात है ? वह जमाना तो आत्मवाटके प्रचंड अभ्युदयका था । मनुप्योंमे ही क्या, बल्कि पशुओं तकमे आत्म प्रभाव अण्ना असर किये हुए था । इसी कारण पुण्य भावनाओने वातावरणको विशेष धर्ममय बना दिया था, जिससे उस समयके प्राणी भी हर बातमे आजसे विशेष उन्नतिगाली थे । उनका मानसिक ज्ञान वृव ही बढ़ा चढ़ा था। यहांतक कि पूर्वभवकी स्मृति पशुओ तकको होजाती थी । वाघोप हाधीको भी मुनिके उरस्थल पर श्रीवत्सका चिन्ह देखकर अपने पूर्वभवका स्मरण होआया था।
पाठको, यह दिव्य साधु राजा अरविंद ही थे। सल्लकी वनमें यह रानपि रूपमें विगनमान थे । मल्मृतिकी मृत्युके उपरान्त यह एक रोज बादलोंकी उथलपयल देख रहे थे, कि देखते ही देखते