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___ मक्खलिगोशाल, मौद्गलायन प्रभृति शेष शिष्य । [ ३३१ ही बौद्धधर्मका प्रवर्तक कहा जाय तो कुछ अत्युक्ति नहीं है । इस दशामें यह स्पष्ट है कि जैनाचार्य भी उन्हीं मौद्गलायनका उल्लेख कररहे हैं; जिनके गुरु संनय बताये गये हैं और जब स्वयं मौद्गलायन जैन मुनि थे, तो उसके गुरु भी जैन मुनि होना चाहिये ।। सौभाग्यसे इनके गुरु संजयका जैन मुनि होना अन्यरूपमें भी प्रमाणित है। और यह सजय एवं जैन शास्त्रके चारण ऋद्विधारी मुनि संजय संभवतः एक ही व्यक्ति हैं। पहले संजयकी शिक्षायें जो बौद्ध शास्त्रोंमें अंकित है' वह जैनियोंके स्याहाद सिद्धांतकी विकृत रूपान्तर ही हैं। इससे इस बातका समर्थन होता है कि स्याहाद सिद्धांत भगवान महावीरसे पहलेका है, जैसे कि जैनियोंकी मान्यता है और उसको संजयने पार्श्वनाथनीकी शिष्य परंपराके किसी मुनिसे सीखा था; परन्तु वह उसको ठीक तौरसे न समझ सका और विस्त रूपमें ही उसकी घोषणा करता रहा । जैन शास्त्र भी अस्पष्ट रूपमें इसी बातका उल्लेख करते हैं, अर्थात वह कहते हैं कि संजयको शङ्कायें थीं जो भगवान महावीरके दर्शन करनेसे दूर होगई ! यदि यह बात इस तरहसे नहीं थी तो फ़िर भगवान महावीर और म० बुद्ध के समयके इतने प्रख्यात मतप्रवतकका क्या हुआ, यह क्यों नहीं विदित होता ? इसलिए हम जैन मान्यताको विश्वसनीय पाते हैं और देखते हैं कि संजय अथवा संजय वैरत्थीपुत्र जो मौद्गलायनके गुरु थे, वह जैन मुनि सजय ही थे। दूसरी ओर इस व्याख्याकी पुष्टि इस तरह भी होती है
१-समनफलसुत्त' "डायोलॉग्स आफ बुद्ध" ( S. B.B. II) २-महावस्तु भाग ३ पृ० ५९.