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३४६] भगवान पार्श्वनाथ । अनोखी बात सुनकर उससे पूछा-"तुम कौन हो, जो मुझ दुःखिनीको अपनी स्वामिनी कहते हो ? भाई, मै तो तुम्हें नहीं जानती हूं।" वह मातंग बोला-" विद्युत्प्रभ नगरके राजा विद्युत्प्रम और रानी विद्युल्लेखाका मै वालदेव पुत्र हूं । एक दिन मैं अपनी स्त्री कनकमालाके साथ दक्षिणकी ओर क्रीड़ा करनेको जारहा था। मार्गमें कलिंगदेशके उपरांत श्री विंध्यगैलकी रामगिरि गिपिरपर श्री वीर नामक मुनिराज विराजमान थे। ('हताए समउ दरिकणदिसिहि रम्ममाणु गयणुय लेगडे, अंधकलिंग हो अंतरिण, विनय सेलु अग्गह ठियउं ॥ २ ॥') इसलिये मेरा विमान उनके ऊपरसे नहीं जासका । (मुणीसरु दिट्ठऊ-तहोणाऊ चल्ला दिव्व विमाणु) मुझे बड़ा भारी क्रोव उत्पन्न हुआ क्योंकि मैने समझ लिया कि इन्होने ही मेरे विमानको रोका है। अतएव वीर मुनिको मैंने उपसर्ग करना प्रारंभ किया । (विकिड उवप्लग्गु तासु) परन्तु उनके पुण्यप्रभावसे मेरी सब विद्या नष्ट होगई। मैं भौंचक्कासे रह गया । मुझे चेत हुआ । मैंने अनेक प्रकारसे उन मुनिवरकी स्तुति की और उपरांत उनसे विद्या सिद्ध होनेका निमित्त पूंछा है। उन्होंने कहा कि चंपापुरके राजा दन्तिवाहनकी पद्मावती रानीको दुष्ट हाथी ले भागा था, सो वह दंतीपुरमें मालीके यहां रहती है । किन्तु मालिन उनको अपने घरसे निकाल देगी और वह भीममसानमें पुत्र प्रसव करेगी। उस बालककी तू जत्र रक्षा करेगा और
१-पुण्यात्रव कथाकोष पृ० २० इस ग्रंथमें अगाडी पद्मावतीका सहायक होना और हस्तिनापुरका स्मशान बताया गया है, जो इससे प्राचीन मुनि कणयामर विरचित 'करकडु महारार चरिव' से वावित है।