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भगवान पार्श्वनाथ |
एकवार वन्दना करने से ही दुर्गतिका वास छूट जाता है। इस तरह भगवान के पवित्र निर्वाण धामका परिचय है ।
भगवानके निर्वाण कल्याणकके दिग्दर्शन करके प्रत्येक हृदय अपनेको ऋत ऋत्य मानता है । इस परिच्छेद में उसके परोक्षदर्शन होरहे हैं और यह आत्म-कल्याणका प्रकट कारण है। इसके स्मरण मात्र से ही सुखोंकी प्राप्ति होती है, क्योकि जिनेन्द्रदेवकी भक्ति सर्व सुखोंको प्रदान करनेवाली है । इसलिए श्री जिनेन्द्र भगवान पार्श्वनाथजीके प्रति वारम्वार नमस्कार है ।
( २३ ) भगवान् पार्श्वनाथ और महावीरस्वामी..
"पार्श्वगतीर्थसन्ताने पंचगद्विशताब्दके । तदभ्यन्तरवत्यर्थ महावीरोत्र जानवान् || २७९ ||"
- उत्तरपुराण |
भगवान पार्श्वनाथजीको मुक्तिलाभ होगया, किन्तु फिर भी उनका तीर्थ महावीर स्वामीके जन्न समय तक चलता रहा । भगवान् पार्श्वनाथमे महावीर स्वामी ढाईसौ वर्ष बाद हुये थे । इम अन्तराल कालमें उनकी आयु भी गर्भित थी । भगवान पार्श्वनाथ वर्तमान युगके २३ वें तीर्थंकर थे और भगवान् महावीर २४ व अथवा सर्व अन्तिम तीर्थकर थे । प्रत्येक युगमें सनातन रीतिसे चौवीस तीर्थकर होते है । इनका परस्पर संबंध जाहिरा कुछ नहीं होता ! यह एक समान महान् पुरुष होते हैं । इसीतरह भगवान पार्श्वनाथ मी एक जीवित परमात्मा थे और अनुपम थे। और महावीर