Book Title: Bhagavana Parshvanath
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 462
________________ ३८० ] भगवान् पार्श्वनाथ । आगामी होने वाले तीर्थकरोके नाम आदिका पता चल चुका है, उसी तरह पार्श्वनायनीकी शिष्यपरंपराको महावीर स्वामीके होनेका 'परिचय मिल चुका था । इमलिये भगवान पार्श्वनाथ नीकी शिष्यपरंपराके शिष्य भगवान् मह वीरके आगमनकी बाट जोह रहे थे और वे म्वत उनकी शरणमें आये थे। किन्तु किन्हीं अजैन विद्वानोंका यह अनुपान है कि भगवान् पार्श्वनाय और महावीरस्वामीके तीर्थकरपने में अन्तर था और इन दोनों तीर्थकरोके शिष्य भगवान् महावीरस्वामीके समयमें भी अलग थे; यद्यपि वे आखिर दोनों मिलकर एक हो गये थे। इसके लिये वे श्वे के उत्ताध्ययनसूत्रकी वह घटना उपस्थित करते हैं जो श्री गौतमम्बामी और केशी श्रमणके संवाद रूपमें वहां मिलती है।' डॉ० वेनीम घव बारुआ महोदय, इसी बातको लक्ष्य करके दोनों तीर्थंकरोंके आपसी सम्बन्धको इन शब्दोंमें प्रकट करते हैं। वे लिखते हैं कि-" महावीर स्वयं अपने शिष्योंमें निगन्ठ अथवा निग्रंथ नाममे परिचित थे। यही नाम अर्थात् निग्रन्थ पाके तीर्थ संघसे भी लागू था, जिन्हें जैनी २३वें तीर्थकर बतलाते हैं। यहां यह प्रश्न ममुचत है कि वस्तुतः महावीरके सैद्धातिक पूर्वागामीसूरपमें क्या पार्श्व स्वीकार किये जा सक्ते है ? जाहिरा नहीं; क्योंकि ऐसा कोई भी माधन प्राप्त नहीं है जिससे पार्श्व एक सिद्धान्तवेत्ता (Phil copher) प्रमाणित हो सकें । पार्य महावीरके पूर्वागामी अवश्य थे, किन्तु एक विभिन्न प्रकारके ! वह प्राचीन तापसोंकी भांतिके एक मधु थे; जिनने कि महावीर और बुद्धके पूर्वागामी १-उतराध्यान सूत्र २३ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497