Book Title: Bhagavana Parshvanath
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 495
________________ i ह ग्रन्थकारका परिचय | [ ४१३ न छपे । ब०जीने उत्साह वर्द्धनार्थ किन्हीं२ को 'मित्र' में स्थान दिया । फलतः लिखना न छूटा । लिखता रहा तो लिखना आगया । बरेलीमे तो कविता रचनेका भी उद्योग चलता रहता था । इसी समय श्रीमान् बाबू चम्पतरायनी वेरिष्टरकी मूल्यमई रचनाओका लाभ हिन्दी जनताको करनेकी उत्कट अभिलाषासे मैंने उनके इथेजीके ग्रन्थोंका हिन्दी अनुवाद करना प्रारम्भ कर दिया । बेरिष्टर सा० ने 'असहमत संगम' के कई अध्यायोका अनुवाद मुझे करने देनेका अवसर प्रदान किया । यहीसे मेरी ग्रन्थ रचनाकी ओर प्रवृत्ति होगई । जब मैं बरेलीमें था तब ही मेरा द्वितीय विवाह हो गया । इसके पहले ही मै समाजोन्नति के कार्यों में भाग लेने लगा था । कानपुर और लखनऊ की महासभा में शामिल हुआ था । महासभाकी कूटनीति से मन उचटासा था । तिसपर दिल्ली के अधिवेशनमें पडितदलकी दुर्नीतिने समाज नेताओं को उसके विमुख कर दिया । समाजका मच्चा हित करनेके नाते 'भा० दि० जैन परिषद' का जन्म हुआ । जहा मैने 'जैनगजट' में महासभाकी सफलता के लिये कई लेख लिखे थे और उसके सुधार करने की धुन में था, वहा सुधारका अवसर न देखकर उल्टै शक्तिका दुरुपयोग समझकर मैने परिषदकी ओर ध्यान दिया । परिषद के कर्णधारोंने मेरे अयोग्य कन्धोपर 'वीर' पत्रके सम्पादनका भार डाल दिया व यथाशक्ति उसका पालन कर रहा हू । सौभाग्यसे हिन्दी प्रतिष्ठित लेखक उसको अपनाने लगे है और विदेशोमे भी वह जैनधर्मका परिचय कराने में सहायक है । उधर इन दिनो स्वास्थ्य हीन रहा और तबियत एकात में मग्न रहने लगी । इम एकांत में कभी भगनानके 1

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