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ग्रन्थकारका परिचय।
ग्यसे उनका गत चैत्रमासमें असमयमें ही स्वर्गवास होगया । ला० गिरधारीलालनीके एकमात्र पुत्र श्री ला० प्रागदासनी हैं । लेखकके ' पूज्य पिता यही हैं, पुराने फर्मके फेल होनेके बाद पिताजी अपना
एक स्वतंत्र 'वेन्किन्गफर्म' स्थापित करनेमें सफल हुये थे । तबसे __ यह फर्म बराबर चल रहा है, चूकि इसका सम्बन्ध सरकारी फौजसे
है; इसलिये भारतके विविध प्रान्तोंमें फर्मको जाना पडता रहा है। ऐसे ही जिस समय पिताजी सीमा प्रान्तकी छावनी कैम्प वेलपुरमें थे, उस समय मिती वैशाखशुक्ला त्रयोदशी बुधवार संवत् १९५८को मेरे इस रूपका जन्म हुआ था। माताजी धार्मिक चित्तवृत्तिकी धारक थीं, यद्यपि मुझे बचपनमें जैनधर्मके साधक साधनोका संसर्ग: प्राप्त नहीं हुआ. परन्तु मातानीकी धार्मिकवृत्तिने मेरे हृदय में उसका प्रतिविम्ब ज्योका त्यो अकित कर दिया। रातको जब मै पहार तारोके विषयमें प्रश्न करता तो वह समाधान करती हुई मुझसे यह कहलवाके सुला देती कि 'जिनवर तारे मन भर कूचे, जहा जीव
तहां तीन किनारे। जा मडलीमें उच्चरे ताहि श्री पार्श्वनाथकी आनि. __तब इसका मतलब कुछ समझमें नहीं आना. किन्तु जब आना
सोचता है तो इस सरल उक्तिमें जनवमकी खाम बातोका उग भरा हुआ पाता हूं। जिनेन्द्र भगवान ही तारे हैं, उन्हींको मनमें स्थारित करके ताला बद करदो । किसी अन्यको हरयके उच्चापन पर मत बैठाओ, संसारसागरमें भटकने हुये म पाणी लिये कि होन-रत्नत्रय-किनारे हैं, उन्हें नीं भूलना चाहिये। श्री पार्थनायके शासनको छायामें नव नानन्दसे कालोप करें : इस साल
गहन उपदेश भला और कने हदय गम हो मता? पीता