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भगवान् पार्श्वनाथ |
वहां केवल सिद्धों को नमस्कार करके श्रमण धर्मका अभ्यास करते 'लिखा गया है।' इस हालत में जैन ग्रन्थोंके बल पर यह नहीं कहा जा सक्ता कि महावीरस्वामीने पहले श्री पार्श्वनाथजी के संघका आश्रय लिया था | हां, आजकलके विद्वान अवश्य ऐसी कल्पना करते हैं और इस पल्पना में कितना तथ्य है, यह उपरोक्त पंक्तियोंसे स्पष्ट है । इसके साथ ही आजीविक संप्रदायके नेता मक्ख लिगोशालको महावीरस्वामीका गुरु बतलाना भी निराधार है । जैन अथवा अनैन शास्त्रोंसे यह सम्बन्ध ठीक सिद्ध नहीं होता ! श्वेताम्बरोंके 'भगवतीसूत्र' के कथनको यथावत् ऐतिहासिक सत्य स्वीकार किया ही नहीं जा सक्ता, यह बात स्वय डॉ० वारुआने स्वीकार की हैं। उसका कथन स्वयं अपने एवं अन्य वे० ग्रन्थोके कथनसे विलग पडता है । इसलिये उसके कथनसे इतना ही स्वीकार किया जा सत्ता है कि गोशालका जैन धर्मसे सम्बन्ध था और महावीरजी के केवलज्ञान कल्याणककें पहलेसे वह अपनेको 'जिन' घोषित करने लगा था | उसके सिद्धान्तोंपर जैनधर्मका प्रभाव पड़ा था बल्कि उसका मत जैन धर्मसे ही निकला था, यह हम पहले और अन्यत्र दिखला चुके हैं । * इसलिये उसका प्रभाव महावीरजी पर पड़ा हो, यह स्वीकार नहीं किया जामक्ता ! जब भगवान् महावीरजीका दिव्य प्रभाव म ० वुद्ध जैसे बड़े और प्रभावशाली मतप्रवर्तक पर पड़ा
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१ - उत्तरपुराण पृ० १०, भगवान् महावीर पृ० ९३ और जैनमत्र ( S. BE.) भाग १ १० ७६-७८|- आजीविक्म भाग १ १० १० १ ३ - वासगदसाड ( Biblo Iadica ) परिशिष्ट पृ० १११ । ८-भगवान महावीर पृ० १७३ और वीर वर्ष इव जयती अक । ५-भगवान मह वीर और महुद्ध पृ० १०३ - १०६ ॥