________________
महाराजा करकण्ड।
[३४७.
वह राज्याधिकारी होजावेगा तब उसके राज्यमें ही तुझे विद्या सिद्ध, होंगी।' सो हे स्वामिन् ! इस मातंगभेषमें मैं वही विद्याधर पुत्र वालदेव हूं । ( मायंगहो रुवें खेयरइं ) उस दिनसे मातगके वेषमें इस स्मशानकी देखरेख रखता हुआ यही रहता हूं।"
बालदेवकी यह आश्चर्यभरी वार्ता सुनकर रानी पद्मावतीको संतोष हुआ। उसने धीरज धरके अपने नवजात शिशुको उसे दे दिया । और उमसे कहा-'तो इस बालकका लालनपालन तू ही कर ।' बालदेवने भी स्नेहपूर्वक वह बालक लेलिया और घर ले जाकर अपनी पत्नीको सौंप दिया ! उसने भी बड़े प्रेमसे उसे अपने वक्षस्थलसे लगा लिया। बालकके हाथोंमें खुजली थी । इस कारण उसका नाम उनने करवंडु रख दिया। (तहो पउरकंडु देरकेवि करी, करकंडुणामु किउ पयडुधरि)
१-तेरूसिवि पुणु मोदिण्णु एवउ । णहुभगालहे सहि विज्जयाउ ॥ ते सावे विज्जउ गउ खणेण । मइ चिंतिउर्वाहण्णिए णियमणेण ॥ एहु मुणिवरु णउ सामणु होइ । त होइ खणद्वेज भणेइ ॥ इम मणि विचलहि लग्गु तासु । किं मुनिवर महो किउविज्जणासु ॥ किंकर तुम्हें हे देव देव । जम्मेविण छडउ तुझ सेव ॥ कोहाणतु सामहि सामिसाल । मापसरउ तणु वणे सयण काल ॥ तो क्यणे उवसमु गउ मुणिंदु । मताण पहावेण फणिंदु ॥ (इससे तो स्वय मुनिवरका कुपित होना प्रगट है ?),
धत्ता-सो मुणिवरु जाणिवि तु मणु, कमकमल एवि पिणु पभणि चउ । हे मुगिवरु करुणइ कहहिं महो, कह होसइ विज्जउरमणियउ ॥४॥ तं सुणिवि मुणीसरु परमणाणि, महो सम्मुहु वोलइ दिव्य वाणि । हे खेयर
चपाणराहि वासु, सिरी धाडी वाहन बंधुरासु ॥ पोमावइ वहीं भामणि __गएण, णेवेनी दुठे करि वितेण । पावे वीसा पुणु मालिएण, दतीपुरे.
णवी तुरिय एण ॥ तहो धरिणिए कलहु करेति सावि, णीसारिय अविसइ इहावि । तहोणंदणु होसई पवरखेडे, पालेसहि सो तुहं गुणणिकेचें ॥
१०