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३५० ] भगवान पार्श्वनाथ ।
एक रोज़ किसी वणिकने आकर इनसे कहा कि 'महाराज, सोरठदेशमें गिरिनगरके राजा अरिसिरके बड़ी ही रूपवती मदनावती नामकी कन्या है। वह सर्वथा आपके योग्य है ।' करकडु इस समाचारको सुनकर गिरिनगर पहुंचे ! सौभाग्यसे स्वय मदनावतीने इनको देख लिया और वह इनको देखते ही कामवाणसे व्यथित होगई। यह जानकर उसके पिताने करकंडुको बड़े आदरसे अपने यहां ठहराया और शुभलग्नमें मदनावतीका विवाह करकंडुसे करा दिया। (सुविसुद्ध दिणहि रनिए मणाह, सामंतहिं कियउ विवाहु वहा) निस समय विवाहका मंगलीक उत्सव होरहा था, ठीक उसी समय रानी पद्मावती भी वहां पहुच गई। उनने हर्षित होकर करकंडुको आशीष दी। विवाह उपरान्त रानदम्पति दंतिपुर लौट आये।
दंतेपुरमें भी खूब उत्सव मनाया गया। याचक जनोको दान दिया गया और श्री जिनमदिरमें पूजनभजन किये गये! फिर राजा करक्डु आनन्दपूर्वक मदनावतीके साथ कालयापन करने लगे किन्तु इसके कुछ दिनों बाद ही चंपासे राजा दंतिवाहनका दूत बूरे समाचार लेकर आया। उसने कहा कि यातो करकंडु महाराज राना
१-"एत्थथिदेव सोरट्ठ देसु, सुरलोउ विडविउ जे असेसु । तर्हि, शायरु गिरिणयरु णामु सुरखेयर णर णयणाहिरामु । तहिं राउ अस्थि अरि- . सिर कयतु, अजव मुणउ अजियगि कतु ।" २-'करकडु गेय आयणणेण, मयणावलि पीडिय कामएण । आयण विवालेहि तणिपवत्त, राएणलिहाविय हरिमणेत्त ।" 3-"तहिं अवसरि पोमावइ विमाय, णियणदणु देखहु तुरिय आय। सादिट्ठी करकडेणिवेण, पुणु पणमिव भावेण वण्णवेण। णियपुतविवाहें हरिसियाइ, आसीसयदणीतुरिउ ताई। चिरु जीवहि णदणु पुहइशाह, कालिन्दी सुरसरिजा ववाह ।" (आसीसदेविसागय तुरति)। ६- चपाहिवदुवउ आणि एत्यु ।'