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३३०] भगवान पार्श्वनाथ । उल्लेखनीय है। सजय और विनय यह दोनों चारण (आकागगामी) जैन मुनि थे और यह भगवान महावीरके जन्म समय तक विद्यमान थे । इनको किसी प्रकारकी सेद्धातिक सशय विद्यमान था: जिसका समाधान इनको भगवान महावीरके दर्शन करते ही होगया था । श्वेतांबरोंके 'उत्तराध्ययनसत्र में भी एक सजय नामके मुनिका उल्लेख है परन्तु यह प्रगट नहीं कि वे भी यही मुनि थे। किंतु उधर बौद्ध शास्त्रोंमें भी एक सजय नामक मतप्रवर्तकका उल्लेख मिलता है और उनके शिष्य मौदलायन एवं सारीपुत्त वहां बतलाय है। मौदलायन जैन मनि थे, यह वात श्री अमितगति आप यके निम्न श्लोकोंसे प्रगट है:
"रुष्टः श्रीवीरनाथस्य तपस्वी मौडिलायनः। शिष्यः श्रीपार्श्वनाथस्य विदधे बुद्धदर्शनम् ॥ ६८ ॥ शुद्धोदन सुते बुद्धं परमात्मानमब्रवीत् । माणिन. कुर्वते किं न कोपवैरिपराजिताः॥६९॥"
इन श्लोकोंमें मौडिलायन अथवा मौद्गलायन नामक तपस्वा श्री पार्श्वनाथनीकी शिष्यपरम्परामें बतलाया है । उसने महावा भगवानसे रुष्ट होकर बुद्ध दर्शनको चलाया था और शुद्धोदनकपुर वुद्धको परमात्मा माना था यह भी कहा है ! यहांपर महिला बौद्धमतका प्रवर्तक इसीलिये लिखा है कि मौद्गलायन विशेष प्रर और बौद्ध धर्मका उत्कट प्रचारक था । इस अपेक्षा मौद्गलायन
१-उत्तरपुगण पृ० ६०८ और महावीरचरित पृ० २५ उत्तराध्ययन (S BE ) पृ. ८२। ३-महावग्ग १० ४-धर्मपरीक्षा अध्याय १८ । ५-हिस्टारीकल ग्लीनिन्गास 2
४० २५५ । २
हावग्ग १-२३-२४॥ निन्गास पृ. ४५ ।