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भगवान् पार्श्वनाथ |
हैं कि वह त्रिलोक वंदनीय तीर्थंकर भगवानको जन्म देकर जगतका कल्याण करती है । इसलिए स्त्री मात्रसे घृणा करना बुद्धिमत्ता नही है । वह हमारे आदरकी पात्र हैं । उनकी अवहेलना करना, स्त्रियोंको पैरोसे ठुकराना अपना अपमान करना है। बस जब सागरदत्तका हृदय इस तरह पलट गया, तो सानद दोनों युवक युवतीका शुभ लग्नमें विवाह होगया । वह सुखपूर्वक गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे !
उन दिनों भारतीय व्यापार आजकलकी तरह हेय अवस्थामें नही था | तबके व्यापारी भी कोरे दलाल नहीं थे । सुतरा वे देशविदेश घूमकर अपने देशके व्यापारको उन्नत बनाते थे और यहांकी आर्थिक दशा फलती-फूलती देखते थे। तब यह बात भी न थी कि राजनीतिके नामसे विविध देशोंमें व्यापारिक प्रतिस्टद्धा चलती हो और मायावी चालोंसे निर्बल अथवा पराधीन जातियों के जीवन संकटापन्न बनाये जाते हों । साथ ही उस समयके व्यापारमें यह भी विशेषता थी कि उस समयके व्यापारी स्वयं ही देश विदेशमें जाया करते थे । विदेशों में जाना तब पाप नहीं समझा जाता था और न घनिक व्यापारी स्वयं परिश्रम करना अपनी शानके खिलाफ समझते थे । इसी अनुरूप सागरदत्तने भी व्यापारके लिये विदेश जानेकी ठहराई ! वह सातवार विदेश गया, परंतु सातों ही दफे उसके जहाज़ समुद्र में नष्ट होगये । लाभान्तराय कर्म उसके मार्गमें ऐसा आड़ा आरहा था कि उसे बार २ प्रयत्न करने पर भी लाभ नहीं होता था, किन्तु किसीके सर्वदा एकसे ही दिन नहीं रहते है । आठवीं बार उसे अपने व्यापार में खुब ही नफा