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३३८] भगवान् पार्श्वनाथ । बल्कि ठीक छै दफे यही घटना घटित हुई ! लोग वन्धुदत्तको 'विषहस्त' कहने लगे और कोई भी उसके साथ अपनी कन्याका विवाह करनेको राजी न होता था । बन्धुदत्तको भी अपने भाग्यपर रोष आ रहा था ! बुद्धिमान् पिताने इस समय उसे सिंहलद्वीपको व्यापारके लिये भेज दिया ! बन्धुदत्तने वहा खूब धन कमाया, परन्तु लौटते समय अभाग्यसे उसका जहाज नष्ट हो गया और वह एक तख्ताका सहारा पाकर एक सम्पत्तिशाली द्वीपके किनारे जा लगा। वहांपर एक मणिमई पर्वत था । बन्धुदत्त उसकी शिविरपर जा पहुंचा और वहां भगवान् नेमिनाथजीके भव्य मंदिरके दर्शन किये एवं वहां उसने श्रावकके व्रतोको ग्रहण किया । उसके इस सरल भावको देखकर चित्रांगद नामक सम्यक्त्वी विद्याधर बहुत ही प्रसन्न हुआ । उसने इसका विवाह करवा देनेकी व्यवस्था करदी ! किन्हीं विद्याघरोंके साथ बंधुदत्तको उसने कौशाम्बी भिजवा दिया। वहां वह भगवान पार्श्वनाथनीके मंदिरमें दर्शन कररहा था* कि वहाके जिनदत्त सेठने इनको देख लिया और इनके साथ अपनी प्रियदर्शना नामकी कन्याका विवाह कर दिया ! बन्धुदत्त खुशी२ यहां रहने लगा, किन्तु आखिर उसने अपने घर जानेकी ठहराई ।
बन्धुदत्त गर्भभारसे झुकी हुई अपनी प्रियाको लेकर नागपुरीको जारहा था कि मार्गमें भीलोने इसे लूट लिया और वे प्रियदर्शनाको भी इससे छीन ले गये । इन भीलोंका स्वामी चन्द्रसेन
* यह जीको नहीं लगता कि भगवान्के साक्षात् विद्यमान रहते हुए उनके निम्ब वनगये हों । इस अपेक्षा इन घटनाओंका स्पष्ट घटित हुआ समझना जरा कठिन है।